सोमवार, 9 अगस्त 2010

परिदृश्य में गौण होता सिनेमा

सिनेमा अपने प्रभाव में पिछले समय में लगातार क्षीण होता जा रहा है, इसकी खबर सभी को है। उनको भी जो लोग फिल्म बना रहे हैं, उनको भी जो लोग फिल्म में सामने या नेपथ्य में काम कर रहे हैं, उनको भी जो सामने से देख रहे हैं और उनको भी जो समग्रता में इसके नफे-नुकसान के कारोबार में जुड़े हुए हैं। ऐसे सभी लोगों को इस बात के अन्देशे हैं कि बीस-पच्चीस साल वाला प्रभाव कायम हो पाना अब मुश्किल है। पिछले ऐसे समय में सिनेमा के ही लोगों ने सिनेमा को गौण करने का काम किया है। सिनेमा में स्तर की गिरावट पर तो अब बात करना ही बेमानी है। यह सब होकर ऐसे धरातल पर आ पहुँचा है जहाँ से रसातल का मार्ग प्रशस्त होता है।
मुम्बई से फिल्म इण्डस्ट्री से जुड़ी ट्रेड गाइडों में से कुछ पत्रिकाएँ माह-दो माह में एक बार दो तरह की सूचियाँ छापती हैं। इनमें से एक सूची वो होती है जिसमें उन फिल्मों के नाम होते हैं जो निर्माणाधीन होती हैं। एक सूची दूसरी होती है जिनका निर्माण पूर्ण हो चुका होता है और वो प्रदर्शन की बाट जोह रही होती हैं। दोनों ही तरफ सूचियाँ लम्बी होती हैं। उच्च कोटि के घराने और बैनर की पन्द्रह फिल्में शायद होती होंगी और शेष पिच्यासी स्वनामधन्य फिल्मकारों और कलाकारों की। बनी हुई फिल्मों में दो-चार-दस के रास्ते प्रशस्त होते हैं, शेष सूची में दर्ज ही रह जाती हैं। ऐसी फिल्मों की संख्या बड़ी ही रहती है। कई बार लगता है कि कितने लोग अप्रदर्शित फिल्मों से अपने अस्तित्व के साथ जुड़े रहते हैं, उनका क्या होता होगा? फिल्म से जुड़े लोगों ने ही अपने माध्यम से अलग हटकर अपने असाधारण खेल प्रेम का परिचय देते हुए टीमें खरीद ली हैं और आपस में मुर्गा-लड़ाई का खेल, दीवाने खेल प्रेमी देख रहे हैं। किसे क्या हासिल हो रहा है, क्या पता लेकिन सिनेमा संस्कृति के जिम्मेदार लोगों ने खेल माध्यम में अपनी ऐसी रुचि प्रदर्शित की है जिसने सबसे ज्यादा हानि सिनेमा को ही पहुँचाने का काम किया है। एक तो वैसे भी दर्शकों ने फिल्में सिनेमाघर में देखना बन्द कर दिया था लेकिन बची-खुची कमी आई. पी. एल. ने पूरी कर दी।
अब भरी गरमी में सिनेमाघरों तक जाना आदमी के बस का ही नहीं रह गया। हर आदमी कार चलाकर आयनॉक्स में मँहगी फिल्म देखने की स्थिति में नहीं होता। शाहरुख खान, शिल्पा शेट्टी और प्रीटि जिन्टा और इनके तमाम समर्थक कलाकार स्टेडियम में इक_ा हैं।
खेल जमकर हो रहा है लेकिन सिनेमा जमकर होना तो दूर ढंग से चल भी नहीं पा रहा। सचमुच सिनेमा के लिए यह समय बड़ा विकट है। खेल में जमा-जुटा सारा ग्लैमर अपने मुख्य स्थान से हट गया है और मुख्य स्थान अर्थात स्टूडियो, आउटडोर, थिएटर सब जगह सन्नाटा छा गया है।

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