गुरुवार, 9 सितंबर 2010

कभी

हम अकेले ही
कुछ अच्छे रस्तों की
पहचान कर आयें हैं
वक्त हो और अगर मन हो तो
साथ चलना कभी

वो सड़क ऐसी है कि
दो लोग ही
दूर तक
चल सकते हैं वहाँ
मोहलत हो और इजाज़त तो
साथ रस्ता तय करना कभी

हम चलेंगे और
चुपचाप निगाह
देखा करेगी
ज़मीं-आसमान और
नज़ारों को
रहा न जाए अगर
हमारे साथ अपने मन की
बात कहना कभी

1 टिप्पणी:

राजभाषा हिंदी ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति।

हिन्दी, भाषा के रूप में एक सामाजिक संस्था है, संस्कृति के रूप में सामाजिक प्रतीक और साहित्य के रूप में एक जातीय परंपरा है।

हिन्दी का विस्तार-मशीनी अनुवाद प्रक्रिया, राजभाषा हिन्दी पर रेखा श्रीवास्तव की प्रस्तुति, पधारें