गुरुवार, 30 सितंबर 2010

अब हारकर तुमको मनाने की बारी है

कब से नखरे सहेजे बैठी हो
कनखियों से देखना फिर भी जारी है
सामने चुपचाप जैसे रूठा स्वर
एक-एक पल लगता जैसे भारी है

पहले नाराज़ कौन हुआ था भला
मौन निगाहें सवाल करती हैं
पहले नाराज़ किसने किया था किसको
जवाब न पाने का मलाल करती हैं

बोलकर भला कोई बात बताएँ कैसे
ठहरे चुप में भी बहुत कुछ सुन लिया हमने
तुम इशारा करो या न भी करो
सुनना चाहा वो कहने को बुन लिया हमने

तुमने हारकर हमें मनाया कई बार
अब हारकर तुमको मनाने की बारी है

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