सोमवार, 11 अक्तूबर 2010

यश चोपड़ा को राष्ट्रीय किशोर कुमार सम्मान

प्रख्यात फिल्मकार यश चोपड़ा को खण्डवा, मध्यप्रदेश में 13 अक्टूबर को निर्देशन के क्षेत्र में जीवनपर्यन्त उत्कृष्ट सृजन और अर्जित प्रतिमानों के लिए राष्ट्रीय किशोर कुमार सम्मान से विभूषित किया जा रहा है। यह सम्मान ऐसे वक्त में दिया जा रहा है जब यश राज कैम्प से उनके फिर एक फिल्म निर्देशन करने की पुष्ट सूचनाएँ हैं। वीर जारा के बाद यह उनकी एक और प्रेम कहानी होगी। यश चोपड़ा को एक पारखी और पीढिय़ों की रूमानी नब्ज को बखूबी समझने वाला हार्ट स्पेशलिस्ट कहा जाए तो शायद कोई अतिशयोक्ति न होगी। वे चिकित्सा विज्ञान के हार्ट स्पेशलिस्ट से अलग दिल के एक ऐसे डॉक्टर हैं जो धमनियों से देह में आते-जाते रूमान को बखूबी महसूस करते हैं और वही उनकी फिल्मों में भी दिखायी देता है।

यश चोपड़ा पर उनके दो आयामों पर लेकर यहाँ बात की जा सकती है। उनका एक इरा त्रिशूल तक आया है और दूसरा कभी-कभी से सिलसिला, चांदनी, लम्हें, डर से होता हुआ दिल तो पागल है और वीर-जारा तक। यश चोपड़ा, अपने भाई के सहायक रहते हुए उन्हीं के बैनर बी.आर. फिल्म्स की धूल का फूल, धर्मपुत्र, वक्त और आदमी और इन्सान जैसी फिल्मों के निर्देशक हुए। राजेश खन्ना के साथ दाग बनाते हुए वे स्वायत्त हुए और दीवार ने कई मायनों में इतिहास रचा। दीवार उस तरह से बड़ी सशक्त और महत्वपूर्ण फिल्म है जिसमें हम जंजीर के अमिताभ को और सबल होते देखते हैं अन्यथा बावजूद जंजीर सफल होने के उनका नायक चेहरा छबि के अनुरूप आश्वस्त दिखायी नहीं देता है।

दीवार सही मायनों में अमिताभ को बनाती है। कायदे से हमें दीवार को अमिताभ के परिप्रेक्ष्य में देखने के पहले यश चोपड़ा के परिप्रेक्ष्य में देखनी चाहिए। फिल्म त्रिशूल उन्होंने, कभी-कभी के बाद बनायी मगर वह दीवार का ही अमिताभीय विस्तार है। कभी-कभी को प्रेम की संगतियों और विसंगतियों का अजीब सा रचाव हम मान सकते हैं मगर उसमें जिन्दगी एक अलग फिलॉसफी भी रचती है। साहिर, अपनी रचनाओं में खूब बोलते हैं, फिल्म के गीतों में, कल और आयेंगे, नगमों की खिलती कलियाँ चुनने वाले, मुझसे बेहतर कहने वाले, तुमसे बेहतर सुनने वाले। काला पत्थर, एक पराजित आदमी के अन्तद्र्वन्द्व को खखोलती है मगर कहीं-कहीं मीठा रूमान वहाँ बड़ी सावधानी से आता है। सिलसिला में फिर एक फिलॉसफी है। चांदनी से यश-दृष्टि यकायक उस समय की पीढ़ी के साथ हो लेती है वहीं दिल तो पागल है, में पूरी स्थापना ही किरदारों के विस्मयकारी और दिलचस्प हस्तक्षेप से एक अलग कहानी रचती है।

बहरहाल, हम यश चोपड़ा को वक्त के निर्देशक के रूप में तो और मजबूती से इसलिए जानेंगे क्योंकि यह पहली बहुत सितारा फिल्म थी, बलराज साहनी, राजकुमार, सुनील दत्त और शशि कपूर के साथ। ऐतिहासिक सफल भी। यशस्वी, यश जी का यश यहाँ पर उनको बड़े कैनवास पर देखे जाने की अपरिहार्यता पेश करता है। स्वर्गीय किशोर कुमार ने उनके लिए बहुत अनूठे गाने गाये थे। यश जी को यह सम्मान परस्पर एक-दूसरे की सार्थकता है।

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