रविवार, 17 अक्तूबर 2010

एनीमेशन फिल्मों में सम्भावनाएँ

इन दिनों एक एनीमेशन फिल्म लव-कुश का प्रचार काफी आकृष्ट कर रहा है। बताया जा रहा है कि हिन्दुस्तान में बनने वाली एनीमेशन फिल्मों में यह अब तक की सबसे मँहगी फिल्म है। प्रोमो देखकर अन्दाजा लगाया जा सकता है कि इसका प्रस्तुतिकरण कितना भव्य और प्रभावशाली है। स्वाभाविक है, रामचरितमानस इस फिल्म का मुख्य आधार है। इस फिल्म को बड़ी मेहनत से बनाया गया है। एनीमेशन फिल्मों का एक-एक दृश्य बड़ी मुश्किल से तैयार होता है और उसमें बड़ी कल्पनाशीलता की जरूरत होती है। यही कारण है कि एक-एक एनीमेशन फिल्म बनने में वर्षों का वक्त लेती है।

चरित्रों को उतना सटीक बनाना, उनको यथार्थ के अनुकूल प्रस्तुत करना, उनके हावभाव, चेष्टाएँ और खासकर जिस पहचान और मन:स्थिति के चरित्र हैं, उसी के अनुकूल उनकी प्रस्तुति से प्रभाव रचना आसान काम नहीं होता। एनीमेशन फिल्मों में रंगों की भी एक बड़ी भूमिका होती है। एनीमेशन फिल्मों की दुनिया इतनी सुरुचिपूर्ण और दिलचस्प है कि इसके काम में डूब जाना होता है। हमारे देश के एक बड़े फिल्मकार गोविन्द निहलानी पिछले चार साल से एक एनीमेशन फिल्म कैमलू पर काम कर रहे हैं जो एक ऊँट की रोचक कथा है। वो कहते हैं इसे बनाते हुए एक अलग तरह का आनंद और एकाग्रता का अनुभव हो रहा है। लव-कुश फिल्म भी एक बड़ी मेहनत का परिणाम है। एनीमेशन फिल्मों को हमारे बड़े सितारे भी खुशी-खुशी अपनी आवाज देने का काम करते हैं और फिर इन फिल्मों के किरदार उन आवाजों से अलग पहचाने जाते हैं।

लव-कुश फिल्म में भी राम के लिए मनोज वाजपेयी ने अपनी आवाज दी है वहीं सीता के लिए जूही चावला ने। हनुमान के लिए राजेश विवेक ने स्वर दिया है। एनीमेशन फिल्म रुचि के साथ देखो तो जोडऩे में कामयाब होती है मगर दुर्भाग्य यह है कि बड़ी-से-बड़ी, मँहगी और महत्वपूर्ण आख्यानों पर बनी एनीमेशन फिल्में भी हमारे यहाँ सफल नहीं हो पातीं। एनीमेशन फिल्मों को जिस तरह का समर्थन अमेरिका और दूसरे देशों में है वैसा हमारे यहाँ नहीं है। ज्यादातर एनीमेशन फिल्में शिक्षाप्रद होती हैं, उन्हें सरकार करमुक्त क्यों नहीं करती?

सरकार चाहे तो एनीमेशन फिल्मों के निर्माण को प्रोत्साहित कर सकती है, सबल बना सकती है। इसे बाल पीढ़ी के पक्ष में एक आन्दोलन की तरह देखा जाना चाहिए। सरकार एनीमेशन फिल्में बच्चों को निशुल्क दिखवाए, ताकि इन फिल्मों के माध्यम से बच्चे अपनी संस्कृति, परम्परा, इतिहास और अस्मिता को जान सकें। यह अपसंस्कृति के सेटेलाइट से बच्चों में होने वाली गम्भीर विकृति और रोगों के विरुद्ध कारगर दवा का काम कर सकती है। साल में अधिकतम चार एनीमेशन फिल्में, स्कूली बच्चों को मिलने वाले दोपहर के मुफ्त खराब भोजन से ज्यादा फायदेमन्द हो सकती हैं।

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