सोमवार, 25 अक्तूबर 2010

पुख्ता कलाकारों की जगहें

ध्यान करो तो कई बार बहुत से अच्छे, प्रभावी और कुछ समय पहले तक अपनी सिनेमाई उपस्थिति से आकृष्ट करने वाले कलाकार अब दिखायी नहीं देते। या तो उनके मतलब का सिनेमा बनना बन्द हो गया है, जो कि सही ही है, या उन तक आज के काबिल फिल्मकारों का ध्यान ही न जाता हो, जिसकी कि सम्भावना भी कम ही है। बहरहाल दर्ज इतिहास आज खण्डहर नहीं माने जा सकते। मजबूत कलाकार हो सकता है, आराम में हों या हो सकता है जीविका और अस्मिता के साथ संघर्ष भी करते हों मगर काम मांगने जाना इन्हें गवारा नहीं होता। अपनी दृढ़ता, अपने स्वाभिमान को जीने का भी मजा ही कुछ और है।

रमेश सिप्पी ने शोले जैसे बड़ी हिट बनाने के बाद जब शान बनायी तो खलनायक ढूँढकर लाना चुनौती थी। सब अपेक्षा करते थे कि गब्बर का विकल्प लाया जाये। सिप्पी कुलभूषण खरबन्दा को शाकाल बनाकर लाये। फिल्म ज्यादा नहीं चली। अमिताभ, शशि, सुनील दत्त, शत्रुघ्र सिन्हा का उतना नुकसान नहीं हुआ जितना खरबन्दा का हुआ। फिर भी वे एक सशक्त कलाकार थे सो बाद की फिल्मों में चरित्र भूमिकाएँ करते हुए उन्होंने अपनी जगह बनायी। वैसे तो महेश भट्ट की अर्थ उनको पूरे हीरो की एक बड़ी अलग तरह की छबि देती है, आज भी वह याद है मगर रवीन्द्र धर्मराज की चक्र, श्याम बेनेगल की जुनून, यश चोपड़ा की नाखुदा और जे.पी. दत्ता की गुलामी और बॉर्डर में वे अलग से नजर आये थे। इन दिनों वे फिल्मों में दिखायी नहीं देते। कुछ समय पहले जरूर धारावाहिक शन्नो की शादी में उनकी भूमिका मर्मस्पर्शी लगी थी।

ऐसे ही सदाशिव अमरापुरकर भी हैं जिनको गोविन्द निहलानी अर्धसत्य में रामा शेट्टी की भूमिका के लिए खोजकर लाये थे। यह किरदार आज भी जीवन्त है। ओमपुरी के साथ उनका कन्ट्रास्ट भुलाए नहीं भूलता। बाद में अनिल शर्मा की हुकूमत, फरिश्ते आदि फिल्मों में अच्छे खलनायक वे बने। इन्द्र कुमार की फिल्म इश्क और डेविड धवन की आँखें में कॉमेडी की। आज उनके लिए भी फिल्में शायद नहीं हैं। डैनी को भी एक सशक्त कलाकार की तरह माना जाता है। यह अन्तर्मुखी अभिनेता उतना सामाजिक भले न हो मगर अपने किरदारों से याद रहता है। मेरे अपने से लेकर धर्मात्मा हो या काला सोना हो या फिर अग्रिपथ, डैनी हीरो के बराबर जगह रखने वाला रसूख हासिल किए रहे। आज वे भी मनमाफिक भूमिकाएँ और फिल्में ऑफर न होने से लाइमलाइट से दूर हो गये हैं।

ऐसी विडम्बनाएँ कई कलाकारों के साथ जुड़ती हैं। ऐसे कलाकारों में आशीष विद्यार्थी, रघुवीर यादव, परीक्षित साहनी आदि कितने ही नाम गिनाए जा सकते हैं। अब सचमुच चरित्र अभिनेताओं के लिए स्पेस खत्म हो गया है। चरित्र अब गढऩे की फुरसत भी किसे है?

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