गुरुवार, 28 अक्तूबर 2010

दिल में बसा के प्यार का तूफान ले चले............

मध्यप्रदेश अपने समय की उत्कृष्ट, अविस्मरणीय और यादगार फिल्मों के फिल्मांकन का भी गवाह रहा है। अपने आयाम और विस्तार में सात पड़ोसी राज्यों का आत्मिक स्पर्श करने वाले इस राज्य में समय-समय पर अनूठी फिल्में बनी हैं जिन्होंने भारतीय सिनेमा में अपनी मूल्यवान जगह बनायी है। बी. आर. चोपड़ा, राजकपूर, सुनील दत्त, मेहबूब खान, बासु भट्टाचार्य, गुलजार जैसे फिल्मकारों ने अपनी फिल्मों के खूबसूरत दृश्य और गीतों का फिल्मांकन यहाँ किया है।

1952 में मेहबूब खान ने फिल्म आन के लिए इन्दौर में एक बग्गी में, दिलीप कुमार और नादिरा पर एक गाना फिल्माया था, दिल में बसा के प्यार का तूफान ले चले, हम आज अपनी मौत का सामान ले चले....आन अपने जमाने की एक मशहूर फिल्म थी जिसे मेहबूब साहब की एक अविस्मरणीय फिल्म के रूप में जाना जाता है।

1953 में राजकपूर की फिल्म आह का क्लायमेक्स जरूर आप सभी को याद होगा जिसमें नायक को तांगे में बैठाकर तांगेवाला गाता हुआ जा रहा है, छोटी सी ये जिन्दगानी रे, चार दिन की जवानी तेरी, हाय रे हाय, गम की कहानी तेरी......इस गाने में भी हम नायक को सतना स्टेशन पर उतरकर तांगे से रीवा जाते हुए देखते हैं........

राजकपूर की एक फिल्म श्री चार सौ बीस का गाना, मेरा जूता है जापानी में मध्यप्रदेश के जिले मील के पत्थर के रूप में नजर आते हैं। यह फिल्म 1955 की है। फिल्म का नायक है, जो यह बताता है कि भले ही पश्चिम की नकल में हमने अपने जूते, पतलून और टोपी विदेशी धारण कर लिए हों मगर दिल तो हिन्दुस्तानी ही है वह विदेशी होने से बचा हुआ है......
फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी.......।

सदाबहार अभिनेता देव आनंद की फिल्म नौ दो ग्यारह का एक गाना, हम हैं राही प्यार के हम से कुछ न बोलिए, जो भी प्यार से मिला, हम उसी के हो लिए, की शुरूआत भले ही दिल्ली से होती है मगर आगे उस गाने के हिस्से मध्यप्रदेश में फिल्माए गये। फिल्म में हम नायक को, इन्दौर रेल्वे स्टेशन के बाहर खड़े होकर महू के लिए सवारी की आवाज लगाते हुए भी देखते हैं, इन्दौर-महू साढ़े छ: आना, इन्दौर-महू साढ़े छ: आना......। यह फिल्म 1957 में आयी थी।

बलदेव राज चोपड़ा, यानी बी.आर. चोपड़ा की फिल्म नया दौर का इतिहास, भोपाल और बुदनी से कैसे जुड़ता है, यह मध्यप्रदेश की राजधानी की पीढिय़ों को मालूम है। नया दौर का प्रदर्शन काल भी 1957 का है। इस फिल्म का क्लायमेक्स, तांगा दौड़ का फिल्मांकन बुदनी में हुआ था। साथी हाथ बढ़ाना, एक अकेला थक जाए तो मिलकर बोझ उठाना, गाने में हमको मध्यप्रदेश की अपनी जमीन पर सितारे दिलीप कुमार, वैजयन्ती माला और हमारे इन्दौर के जॉनी वाकर दिखायी देते हैं। साथी हाथ बढ़ाना, विकसित होते हिन्दुस्तान का सपना देखने वाले हर इन्सान की परस्पर दूसरे से की जाने वाली अपेक्षा और सद्इच्छा का गीत है।

सौन्दर्य सलिला नर्मदा जिस भेड़ाघाट में संगमरमरी चट्टानों से खिलवाड़ करते हुए असीम वेग से बहते हुए आगे जाती है, वहीं पर फिल्माया गया था, अपने समय का वो मधुर गीत, ओ बसन्ती पवन पागल.....राजकपूर और पद्मिनी पर फिल्माया गया यह गीत, फिल्म जिस देश में गंगा बहती है, का था। 1960 में यह फिल्म आयी थी। उस समय हमारे देश में दस्यु समस्या चरम पर थी, मध्यप्रदेश के चम्बल में डाकुओं का आतंक था। यह फिल्म दुर्दान्त दस्युओं के हृदयपरिवर्तन की भावनात्मक आकांक्षा के साथ बनायी गयी थी।

इसी ज्वलन्त विषय को छुआ था, अभिनेता और निर्देशक सुनील दत्त ने फिल्म मुझे जीने दो बनाकर। मुझे जीने दो, 1963 की फिल्म है जो बड़े जोखिम के साथ चम्बल के बीहड़ों में ही फिल्मायी गयी। इस फिल्म के आरम्भ में ही सुनील दत्त, मध्यप्रदेश सरकार के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं..........वहीदा रहमान और सुनील दत्त पर फिल्माया गया, इस फिल्म का गीत, नदी नारे न जाओ श्याम पैंया पड़ूँ, आशा भोसले की आवाज़, लच्छू महाराज की कोरियोग्राफी और मधुर गीत-संगीत रचना के कारण आज भी हमारे ज़हन में ताज़ा है।

1966 में बनी फिल्म दिल दिया दर्द लिया की शूटिंग मध्यप्रदेश में माण्डू और उसके आसपास हुई थी। दिलीप कुमार और वहीदा रहमान इस फिल्म के कलाकार थे। इस फिल्म के अनेक दृश्यों के पाश्र्व में माण्डू अपने इतिहास और सौन्दर्यबोध की धीरजभरी, शान्त मगर भीतर ही भीतर हमसे संवाद करती अनुभूति से रोमांचित करता प्रतीत होता है। दिलरुबा मैंने तेरे प्यार में क्या-क्या न किया, दिल दिया दर्द लिया, गाना फिल्म के जिक़्र के साथ ही याद आ जाता है हमें।

बासु भट्टाचार्य की फिल्म तीसरी कसम, गीतकार-निर्माता शैलेन्द्र की एक बड़ी दार्शनिक परिकल्पना थी। इस फिल्म के बहुत से हिस्से मध्यप्रदेश में फिल्माए गये थे। सजन रे झूठ मत बोलो, खुदा के पास जाना है, सहित फिल्म के कई गीत, दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समायी, सजनवा बैरी हो गये हमार, चिठिया हो तो हर कोई बाँचे, भाग न बाँचे कोय में जीवन की क्षणभंगुरता और उसके यथार्थ तक पहुँचने का रास्ता हमें अपने अन्तर से महसूस होता है। कुरवाई, बीना स्टेशन पर फिल्म का नायक खड़ा होकर सामान और सवारी की प्रतीक्षा करता है, नायक अर्थात राजकपूर।

दिल दिया दर्द लिया के निर्माण के ग्यारह वर्ष बाद 1977 में एक बार फिर एक अच्छी फिल्म किनारा के बहुत से दृश्य माण्डू में फिल्माए गये। निर्देशक गुलजार की इस फिल्म की कहानी में माण्डू, हादसे की शिकार नायिका के व्यथित और एकाकी मन के साथ जैसे एक हमदर्द की तरह दिखायी देता नजऱ आता है, नाम गुम जाएगा, चेहरा ये बदल जायेगा, मेरी आवाज़ ही पहचान है, गर याद रहे.............

मधुर, मर्मस्पर्शी और हमेशा याद रह जाने वाले गानों के माध्यम से हमने जिन फिल्मों को याद किया, केवल उतनी ही फिल्में मध्यप्रदेश में बनीं हों, ऐसा नहीं है। मध्यप्रदेश में रानी रूपमति से लेकर हाल की राजनीति और पीपली लाइव तक अनेक फिल्मों का निर्माण हुआ है। मध्यप्रदेश प्रतिष्ठित निर्देशकों, बड़े निर्माण घरानों और विख्यात कलाकारों की उपस्थिति, काम और स्थापित प्रतिमानों से गुलज़ार रहा है।

यह यात्रा अनवरत् जारी है.........................

7 टिप्‍पणियां:

PN Subramanian ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति. क्या बिमल रॉय कके फिल्म "मधुमती" के कोई गीत बस्तर के तीरथगढ़ जलप्रपात में फिल्माए गए थे ?

सुशील बाकलीवाल ने कहा…

हमारे अपने इन्दौर व आसपास के क्षेत्रों से जुडी चित्रपट नगरी की तथ्यपरक जानकारी । भेडाघाट पर फिल्माया गया गीत ओ बसन्ती पवन पागल, ना जा रे ना जा, रोको कोई. भी आपकी सूचि से छूट रहा है । सुशील बाकलीवाल

फ़िरदौस ख़ान ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति...

सुनील मिश्र ने कहा…

धन्यवाद सुब्रमण्यम जी। "मधुमति" के संदर्भ में ऐसी जानकारी नहीं हैं।

सुनील मिश्र ने कहा…

सुशील जी, आभारी हूँ। आप हमारा लेख ध्यान से पढ़ें, भेड़ाघाट वाले गीत के बारे में तो हमने लिखा है, "जिस देश में गंगा बहती है" के संदर्भ में।

सुनील मिश्र ने कहा…

सुशील जी, आभारी हूँ। आप हमारा लेख ध्यान से पढ़ें, भेड़ाघाट वाले गीत के बारे में तो हमने लिखा है, "जिस देश में गंगा बहती है" के संदर्भ में।

सुनील मिश्र ने कहा…

फिरदौस जी, बहुत आभार आपका।