शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

बंद पलकों के नयन

नयन बड़े अहिस्ता कहते हैं
मन तो नहीं भरता
तुम्हें देखते
फिर ओढ़ लेते हैं पलकें
बड़े धीरे से
कहते हैं
नींद आ रही है

झाँकते हैं बड़े चुपके
उन्हीं ओढ़ी पलकों के
भीतर से
निहारते हैं थिर समय में
एक मौन उदास सा फिर भी
कहते हैं
नींद आ रही है

अँधेरे के नयन
नज़र नहीं आते उजाले के
नयनों को
उजाले के नयन बंद पलकों में
हारे होते हैं अपने नयन
और बंद पलकों के नयन
कहते हैं
नींद आ रही है

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