गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

एक विरासत का नाम संगीतकार रवि

4 दिसम्बर को इन्दौर में मध्यप्रदेश सरकार प्रख्यात संगीतकार रवि को पच्चीसवाँ राष्ट्रीय लता मंगेशकर सम्मान प्रदान करने जा रही है। रवि इस सम्मान को ग्रहण करने इन्दौर आ रहे हैं। सम्मान प्राप्त करने के बाद वे अपने संगीत कलाकारों के साथ कार्यक्रम भी प्रस्तुत करेंगे जिसके बहाने सुनने वालों के सामने भारतीय सिनेमा के अतीत-व्यतीत युग का स्वर्णिम संगीत पुनस्र्मृतियों में ले जायेगा।

फिल्म संगीत जगत में पितामहों की पीढ़ी में अब बड़े कम लोग रह गये हैं। संगीत के क्षेत्र में खैयाम हैं, रवि हैं। गायन के क्षेत्र में मन्नाडे और मुबारक बेगम हमारे बीच हैं। स्वर्णयुग आज की पीढ़ी को पता भी न होगा क्योंकि उनके अविभावकों को भी पिछले दो दशकों में भोथरे होते संगीत के बीच सब विस्मृत हो गया होगा। बहरहाल रवि का सम्मान किया जाना एक बड़ी घटना है। पिछले काफी समय से यथासामथ्र्य सक्रियता के बावजूद रवि भुला से दिए गये थे।

रवि ने अपना कैरियर स्वर्गीय हेमन्त कुमार के सहायक के रूप में आरम्भ किया था। यह वो दौर था जब उस्ताद अपने शार्गिद से आत्मीय स्नेह रखता था, उसकी प्रतिभा की कद्र करता था और उसको प्रोत्साहित करने में पीछे नहीं हटता था। यही वजह थी कि बहुत कम समय रवि सहायक के रूप में काम कर पाये और जल्दी ही स्वतंत्र रूप से निर्देशक बन गये। रवि को उनके वरिष्ठ संगीतकारों ने भी बहुत प्रोत्साहित किया था। जिस समय रवि अपने आपको माँझ रहे थे उस समय अच्छे गीत की अपने लिए अपरिहार्यता की स्थितियों में उन्होंने शकील बदायूँनी से गीत लिखवाने की तमन्ना की थी, उस समय नौशाद साहब ने शकील बदायूँनी से रवि को मिलवाया था और उनके लिए भी गीत लिखने के लिए प्रेरित किया था।

रवि ने जिन फिल्मों का संगीत दिया, वे बहुत सफल और श्रेष्ठ फिल्में थीं। उनमें उत्कृष्ट कलाकारों ने काम किया था। आज भी उन फिल्मों का अपना महत्व है। हम वचन, दिल्ली का ठग, घर-संसार, चौदहवीं का चांद, वक्त, हमराज, भरोसा, घूंघट, घराना, गृहस्थी, फूल और पत्थर, चिराग कहाँ रोशनी कहाँ, ये रास्ते हैं प्यार के, दो कलियाँ, खानदान, काजल, नीलकमल, आँखें आदि प्रमुख हैं। रवि ने हिन्दी से इतर भाषाओं की फिल्मों विशेषकर दक्षिण की फिल्मों में संगीत दिया। पाठकों को जानकर आश्चर्य होगा कि रवि ने पन्द्रह मलयालम फिल्मों में संगीत दिया।

चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो, ऐ मेरी जोहरा जबीं, मिलती है जिन्दगी में मोहब्बत कभी-कभी, तुम अगर साथ देने का वादा करो, संसार की हर शै का इतना ही फसाना है, ये झुके-झुके नैना ये लट बलखाती, लायी है हजारों रंग होली, तुम जिस पे नजर डालो उस दिल का खुदा हाफिज, मेरे भैया मेरे चंदा मेरे अनमोल रतन, तुझे सूरज कहूँ या चन्दा, तुझको रक्खे राम तुझको अल्ला रक्खे आदि बहुत से गीत हैं जो रवि को रवि के रूप में पुख्तगी के साथ स्थापित करते हैं। आज के समय में रवि सचमुच सिनेमा की अनमोल सांगीतिक विरासत हैं।

कोई टिप्पणी नहीं: