शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

फूहड़ता विद्वतजनों को भी हँसाती है

भद्रता संस्कारों से आती है, ऐसा कहा जाता है। यह पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती है, इसके भी उदाहरण होते हैं। कई बार भद्रता परिवेश और संगत से भी आती है। घर, परिवार और कुटुम्ब में कई बार आश्चर्यजनक ढंग से इसके विरोधाभास भी नजर आते हैं। लेकिन बहुत बार इस तरह के उदाहरण हतप्रभ करते हैं जब अपने व्यक्तित्व और व्यवहार में असाधारण गरिमा को जीने वाले लोग भी फूहड़ता के आगे हथियार डाल देते हैं और अपनी सहमत हँसी से उसका एक तरह से समर्थन कर दिया करते हैं।

एक म्युजिक अवार्ड का शो, टेलीविजन के एक लोकप्रिय चैनल पर एक शाम अभी कुछ दिन पहले ही देखने का मौका कुछ देर को आया। बहुत सारे जाने-पहचाने चेहरे बैठे हुए थे। लता मंगेशकर थीं, आशा भोसले, ऊषा मंगेशकर थीं, अदनान सामी थे, रहमान थे, जावेद अख्तर थे, कैलाश खेर थे, सलमान थे, सैफ थे, करीना थीं, सोनू निगम थे, कैलाश खेर थे, शान थे, रमेश सिप्पी थे, जगजीत सिंह थे, राजकुमार हीरानी थे और भी बहुत सारे शख्स मौजूद थे। इन सबके बीच गरिमा की वृद्धि करते हुए विख्यात सन्तूर वादक पण्डित शिव कुमार शर्मा बैठे दिखे और मोहनवीणा वादक पण्डित विश्वमोहन भट्ट भी।

मंच पर एंकरिंग करते हुए बेसाख्ता अर्थहीन और कुतर्कभरी बतकही के सिरमौर साजिद खान सक्रिय थे। अब ऐसे में जो मजमा जमा, वह बड़ा ही सतही और कई-कई बार पटरी से उतरती शालीनता का था। साजिद चुटकुले पेश करते हुए, बनावटी किरदारों को मंच पर बुलाकर उनसे निरर्थक संवाद करते हुए सभी बैठे हुओं को खूब हँसा रहे थे। संगीत से जुड़े अवार्डों की शाम थी। गीतकारों, संगीतकारों और गायकों को सम्मानित किया जा रहा था। तानाबाना इस तरह का बुना हुआ था कि सीधे-सीधे सम्मानित करने की प्रथा यहाँ नहीं दिखायी दी। बीच-बीच का स्पेस भरना था।

जाहिर है कार्यक्रम बनाने वालों को कार्यक्रम मनोरंजन से भरपूर बनाने की जवाबदारी सौंपी गयी होगी। यह भी जाहिर है कि उन सबमें बहुमत इस बात का रहा होगा कि मामला मसालेदार न बनाया गया तो देखने में दर्शकों को भला क्या मजा आयेगा? सो इस तरह मजा क्रिएट किया गया। फूहड़ता मंच पर बड़े पाखण्ड के साथ आती है, यह तो हम सब ही जानते हैं, धीरे-धीरे कैबरे डांसर की तरह वह अपना शर्मनाक जलवा दिखाती है। सारा कुछ इस तरह का होता है कि सभी को रस आने लगता है।

ऐसा लगता है कि कुछ लोगों की यह परम मान्यता हो गयी है कि सारा जगत तमाम दुखों से दुखी है और उसे येन केन प्रकारेण हँसाना है। कलाकार भी दुखी हैं, मेहनत, परिश्रम और तनाव से आये दिन तंग रहते हैं, उनको भी हँसाना है। तो इस भावना, सारा पुनीत कार्य ऐसे स्तर पर जाकर हो रहा है। विस्मय इस बात का है कि हँसी की स्तरहीन परिपाटी में हँसते हुए सभी की सहमति होने लगी है। सभी की, जिनके नाम इस टिप्पणी में आये हैं।

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