मंगलवार, 25 जनवरी 2011

भीमसेन जोशी, मन्नाडे और बसन्त बहार

भारतीय शास्त्रीय संगीत परम्परा की मूर्धन्य मनीषी पण्डित भीमसेन जोशी से जुड़ा एक महत्वपूर्ण किस्सा विख्यात पाश्र्व गायक मन्नाडे ने टिप्पणीकार से एक अन्तरंग बातचीत में बताया था जो फिल्म बसन्त बहार से जुड़ा है। मन्ना दा ने जिस तरह ये किस्सा सुनाया था, जस का तस सुनना, ज्यादा अनुभूतिजन्य है-

वे कहते हैं, एक बार की घटना बताऊँ, बसन्त बहार फिल्म की बात है। उसमें एक गाना था, केतकी गुलाब जूही चम्पक बन फूलें। तो उस समय संगीतकार शंकर ने टेलीफोन किया, आइये मन्ना बाबू गाना तैयार है। मैं गया, तो वो बोले कसकर बाँधकर तैयार हो जाइये। मैंने बोला, क्या बात है, तो शंकर बोले, दादा कॉम्पिटीशन का गाना है। मैंने कहा, अच्छी बात है। कौन रफी मियाँ गायेगा? शंकर बोले, नहीं, रफी मियाँ नहीं, ये भीमसेन जोशी गायेंगे। मैं यह सुनकर बैठ गया वहाँ पर। मैंने कहा, भीमसेन जोशी गायेंगे, कॉम्पिटीशन कर रहे हो?

मैं तुरन्त अपने घर लौट आया और अपनी बीवी को बोला, चलो पन्द्रह दिन बाहर चले जाते हैं। वो बोली, क्यों? तो मैंने बताया कि वो लोग भीमसेन जोशी के साथ कॉम्पिटीशन का गाना गवाना चाहते हैं। हम लोग बाहर जाते हैं, पुणे में जाकर रहेंगे, फिर जब गाने का रेकॉर्डिंग हो जायेगा तब जाकर वापस आयेंगे। मेरी वाइफ ने मुझे समझाया। दरअसल मैं इसलिए डर रहा था कि मेरी आवाज़ हीरो पर थी जो अपने स्पर्धी को हराता है। अब मेरी हिम्मत कैसे हो, इतने बड़े गायक को हराने की? मैं बहुत परेशान हो गया था। ये भी अजीब बात है। मैं गाना गाकर जोशी को हरा दूँ, ये कोई आसान बात है? मैं अपनी हार मानता हूँ, मैं यह नहीं कर सकता। वाइफ ने मुझसे कहा, क्यों नहीं कर सकते, ये आपको करना पड़ेगा। तो फिर मैं दोबारा शंकर के पास गया और उनसे कहा, शंकर जी, मैंने कहा, मुझे थोड़ा समय दीजिए, मैं रियाज़ करके अपने आपको थोड़ा तैयार कर लूँ, फिर मिलता हूँ।

शंकर बोले, हाँ ठीक है, दादा, मैं बोलता हूँ डायरेक्टर को। वो भारत भूषण के भाई का पिक्चर था। उन्होंने भी कहा, ठीक है, पन्द्रह-बीस दिन के बाद हम रेकॉर्डिंग करेंगे। फिर खूब तैयारी की, तानबाज़ी की। तब मेरी आवाज़ भी काफी असरदार थी लेकिन मैं शास्त्रीय संगीत के बारे में कुछ भी जानता नहीं था। वो पन्द्रह दिन मैंने सुबह उठकर जो क्लैसिकल रियाज़ किया न, उससे मुझे बहुत बल मिल गया। गाना रेकॉर्ड हो गया। गाना होने के बाद भीमसेन जोशी ने कहा, मन्ना जी, आप तो बहुत अच्छा क्लैसिकल गाते हैं! आप क्लैसिकल प्रोग्राम क्यों नहीं करते? मैंने उनसे कहा, शर्मिन्दा न कीजिए मुझे, आप लोग के होते हुए मैं क्या खाक गाऊँगा। वे बोले, नहीं, नहीं आप गा सकते हैं। आप दिल में तय कर लें कि क्लैसिकल गायेंगे तो आप बहुत अच्छा गायेंगे।

उनका यह कम्प्लीमेन्ट मुझे बहुत अच्छा लगा।

1 टिप्पणी:

daanish ने कहा…

बहुत बड़े विद्वान्
और अपनी अपनी कलाओं में दक्ष
महान विभूतियों की महानता
उनकी विनम्रता में ही छिपी होती है ....

बहुत ही रोचक और महत्वपूर्ण आलेख के लिए
अभिवादन स्वीकारें