शनिवार, 26 फ़रवरी 2011

गुड्डी कुसुम के सपनों में धर्मेन्द्र

इस रविवार हम जया बच्चन की एक खूबसूरत फिल्म गुड्डी की चर्चा करने जा रहे हैं। इस फिल्म का प्रदर्शन काल 1971 का है। प्रख्यात फिल्मकार हृषिकेश मुखर्जी ने इस फिल्म का निर्देशन किया था। यह फिल्म आम आदमी की जिन्दगी में सिनेमा और सपनों के बड़े सम्मोहक और कल्पनातीत अनुभूतियों के यथार्थ को उपस्थित करती है। यों देखा जाये तो हम पहली निगाह में इस विषय को हल्का-फुल्का कह सकते हैं मगर वास्तविकता यह है कि यह एक संवेदनशील विषय था जिसको अपनी सूक्ष्म और समाजप्रतिबद्ध व्यवहारिक दृष्टि से हृषि दा जैसे महान फिल्मकार ने एक अविस्मरणीय फिल्म के रूप में सार्थक किया था।

कुसुम, एक छात्रा है, स्कूल में पढ़ती है। घर-परिवार की लाड़ली कुसुम का नटखट और चंचल स्वभाव उसको अपनों के बीच हमेशा एक ऐसी लडक़ी के रूप में चिन्हित करता है जिसकी दुनिया एकदम सौम्य, निष्कपट और अनुपम है। वह फिल्मों की शौकीन है। खासतौर पर धर्मेन्द्र की बड़ी प्रशंसक है। उनके प्रति कुसम का अनुराग उसी तरह का है जिस तरह का मीरा का कृष्ण के प्रति था। ख्वाबों और ख्यालों में कुसुम के जहन में जो सिनेमा, अपने रोचक और अनूठे दृश्यों के साथ चला करता है, उसके नायक धर्मेन्द्र होते हैं, और नायिका कुसुम स्वयं। हम इस कल्पनाशीलता में कुछ चिरपरिचित गानों के मुखड़े भी सितारा धर्मेन्द्र और कुसुम के रूमानी और गुदगुदाने वाले सरोकारों के रूप में देखते हैं।

एक योग इस तरह का बनता है कि एक फिल्म की शूटिंग हो रही है और मालूम हुआ कि उसमें हीरो धर्मेन्द्र आये हुए हैं। तमाम लड़कियाँ उनका आटोग्राफ ले रही हैं। कुसुम की ख्वाहिश है। वह मिलना चाहती है। कुसुम को धर्मेन्द्र से मिलवाया जाता है। कुसुम के परिजन एक मध्यस्थ के माध्यम से धर्मेन्द्र से मिलते हैं और कुसुम के बारे में बताते हैं। धर्मेन्द्र, कुसुम के मन के भ्रम को दूर करने में परिवार की मदद करते हैं। वो कई बार सेट पर उनसे मिलती है और वो बतलाते हैं कि दरअसल फिल्मों में जो दिखाया जाता है, उसका सचाई से कितना सरोकार होता है और सिनेमा में किरदारों की जिन्दगी, वैभव, सहजताएँ, अनुकूलताएँ वास्तविकता के कितना नजदीक होती है। आखिर कुसुम के मन से सब भ्रम जाते रहते हैं।

गुड्डी की पटकथा स्वयं हृषिकेश मुखर्जी ने लिखी थी जिसमें गुलजार ने उनको सहयोग किया था। सत्तर के दशक में धर्मेन्द्र की सदाबहार मोहक छबि और उनसे जुड़े मैनरिज़्म को यह फिल्म बखूबी दर्शाती है। हृषिदा से अपने रिश्तों के चलते फिल्म में मेहमान कलाकार के रूप में दिलीप कुमार, प्राण, असरानी आदि सितारे भी नजर आते हैं। दूसरी भूमिकाओं में सुमिता सान्याल, अवतार कृष्ण हंगल, उत्पल दत्त, समित भंज, केश्टो मुखर्जी आदि बड़ी खूबसूरती से कहानी का हिस्सा होते हैं। जया बच्चन, तब वे भादुड़ी थीं, इस फिल्म के शीर्षक की ऐसी पर्याय हुईं कि उनको हमेशा गुड्डी ही कहा गया। दरअसल उनकी और धर्मेन्द्र की भूमिका ही इस फिल्म का मुकम्मल अर्थात है। हमको मन की शक्ति देना, गीत अनूठा और यादगार है।

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