रविवार, 10 अप्रैल 2011

पवन मल्होत्रा और छोटी सी जिन्दगी


हिन्दी सिनेमा में ऐसे बहुतेरे कलाकार हैं जिनकी प्रतिभा असाधारण है मगर जिस तरह से वे किरदार को जिया करते हैं, वैसी दृष्टि रखने वाले फिल्मकार और कहानियाँ अब हमारे यहाँ सम्भव होती नहीं दीखतीं। इसके बावजूद कभी-कभार ऐसे अवसर जरूर आते हैं जब कोई गम्भीर निर्देशक अच्छा काम करना चाहता है तो वह इन कलाकारों की शरण में जाता है और बड़े आदर के साथ अपनी फिल्मों में विशिष्ट किरदारों के रूप में सहभागिता का अनुरोध करता है। ऐसे निर्देशकों-फिल्मकारों को भी इस बात का श्रेय जाता है कि वे ऐसे कलाकारों को अपने साथ लेकर अपना भी मान बढ़ाते हैं और उनका भी।

जीटीवी पर पिछले सप्ताह से एक धारावाहिक छोटी सी जिन्दगी शुरू हुआ है। यह धारावाहिक एक पिता, उसकी दो छोटी बेटियों के बीच घटित हो रहा है। छोटी बेटी के जन्म के समय पत्नी का देहान्त हो गया। बड़ी बेटी, छोटी बेटी का ख्याल माँ की तरह ही रखती है, उसे याद आता है कि किस तरह अन्तिम समय में माँ ने नन्हीं बच्ची बड़ी बेटी की गोद में सौंप दी थी। परिवार बहुत गरीब है। पिता के पास दो समय की रोटी जुटाने का कोई उपाय नहीं है। पिता अपनी बेटियों से बहुत प्यार करता है मगर उसके पास ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि वह बेटियों की परवरिश कर सके। दूसरा ब्याह इसलिए कर लेना चाहता है कि कुछ पैसे मिल जायेंगे मगर सामने वाले की शर्त यह है कि उनकी बेटी, इसकी बच्चियों के साथ नहीं रहेगी। एक निष्ठुर निर्णय पिता लेता है कि बेटियों को अनाथाश्रम छोड़ आता है।

पवन बड़े अरसे बाद परदे पर नजर आये हैं। वे बहुत प्रतिभाशाली कलाकार हैं। तीन दशक में अनेक महत्वपूर्ण फिल्मों के माध्यम से उन्होंने अपने को प्रमाणित किया है। अब आयेगा मजा उनकी पहली फिल्म थी। बाघ बहादुर फिल्म में उनको राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था। सईद अख्तर मिर्जा की फिल्म सलीम लंगड़े पे मत रो में उनकी केन्द्रीय भूमिका थी। अन्तर्नाद, सिटी ऑफ जॉय, तर्पण, अर्थ, फकीर, जब वी मेट, दिल्ली छ:, रोड टू संगम, ये फासले, फरहान अख्तर की डॉन और अनुराग कश्यप की ब्लैक फ्रायडे की खास फिल्में हैं। बातचीत में पवन मल्होत्रा एकदम सहज और इस दम्भ से परे हैं कि अपनी श्रेणी और समय में वे एक अनूठे कलाकार हैं। उनकी बातों और मुकम्मल छबि में एक गहरा और कल्पनाशील अभिनेता बसता है।

इस धारावाहिक को करते हुए वे अपनी एकाग्रता और सक्रियता में एक लम्बी उपस्थिति के साथ दर्शकों के बीच में अभी रहने वाले हैं। छोटी सी जिन्दगी में उनके कई सीन भीतर तक विचलित कर देते हैं। छोटी सी जिन्दगी, एक अच्छा प्रकल्प है जिसमें पवन का जुडऩा, उसको समर्थन देना इस बात का प्रमाण है कि वे इस निर्माण के सार्थक मन्तव्य से वाकिफ हैं। इस सीरियल को लेकर चर्चा में पवन कहते हैं कि यह प्रस्तुति आपको बहुत अपनी सी लगेगी, हाँ कुछ कडिय़ाँ आपको निरन्तर और समर्थन भाव से देखना होंगी।



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