शनिवार, 16 अप्रैल 2011

नायक का मौन प्रायश्चित और काला पत्थर

1979 में आयी काला पत्थर, विख्यात निर्देशक यश चोपड़ा की वो फिल्म थी, जिसने दीवार और त्रिशूल के बाद अपेक्षाकृत कम आर्थिक लाभ अर्जित किया था और श्रेष्ठता के मापदण्ड पर समीक्षकों ने, बावजूद एक साथ अनेक बड़े सितारों की मौजूदगी के, इस फिल्म को कमतर ठहराया था लेकिन कुछ संजीदा समीक्षकों का मानना यह भी था, कि किसी बड़े निर्देशक का विफल प्रयोग एकदम से खारिज नहीं किया जाना चाहिए। हिम्मत जुटाकर ऐसी फिल्म देखना जरूर चाहिए क्योंकि आखिरकार वह काम खराब नहीं है, बल्कि समय विशेष में वह किन्हीं कारणों से उत्साहजनक ढंग से ग्राह्य नहीं हुआ है।

यह फिल्म एक नजर में तो कोयले की खदान में काम करने वाले मजदूरों की जिन्दगी, उनके सुख-दुख और विडम्बनाओं को टटोलती है, लेकिन साथ ही साथ इस तरह का कारोबार करने वाले धनपतियों की लिप्सा, महात्वाकाँक्षाएँ और अपराधवृत्ति को भी रेखांकित करती है। इस वातावरण के साथ ही फिल्मकार ने कुछ प्रमुख चरित्र भी गढ़े हैं जो सकारात्मक और एक-दो ग्रे-शेड के हैं मगर उनके भीतर-बाहर के द्वन्द्व, जिन्दगी को देखने-जीने का ढंग और ठसक सभी की बानगी कहीं न कहीं बांधती अवश्य है।

कोयले की खदान में जहाँ हजारों मजदूर रोज सुबह सायरन बजने के साथ ही जमीन से सैकड़ों फीट नीचे जाते हैं, शाम होने पर बाहर आ पायेंगे या नहीं या कौन नहीं आ पायेगा इसको लेकर डर और अन्देशे हैं क्योंकि मालिकों को मजदूरों की जान-माल की परवाह नहीं है। एक युवक विजय यहीं पर मजदूर की जिन्दगी बिता रहा है जो हमेशा मौन रहता है। एकान्त उसको किसी समय लिए गये एक गलत निर्णय और उसके परिणामस्वरूप ध्वस्त हो गये उसके भविष्य की याद दिलाता है। नेवी का यह केप्टन, अब स्याह परिवेश में एक तरह की सजा भोग रहा है। एक इन्जीनियर है जो इस खदान में नियुक्त होता है और गलत हो रहे का विरोध करता है। एक जेल से भागा हुआ अशिष्ट और अकड़बाज किरदार है।

काला पत्थर, सचमुच बदले वक्त में एक बार फिर देख लेने वाली फिल्म लगती है। अमिताभ बच्चन इस फिल्म में विजय की भूमिका में अपनी क्षमता का सब कुछ दाँव पर लगाते हैं। फिल्म में शशि कपूर, शत्रुघ्र सिन्हा, राखी, परवीन बॉबी, नीतू सिंह और मेहमान भूमिका में संजीव कुमार महत्वपूर्ण किरदार हैं। सलीम-जावेद की लिखी इस फिल्म के गाने साहिर के हैं और संगीत सलिल चौधुरी और राजेश रोशन का। एक रास्ता है जिन्दगी, धूम मचे धूम, बाँहों में तेरी मस्ती के घेरे, मेरी दूरों से आयी बारात आदि सभी गाने अपने समय के लोकप्रिय और यादगार हैं।

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