शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों का अस्तित्व


मनुष्य के जीवन में विलासिता के कुछेक आयाम निर्धारित हैं, जैसे धूम्रपान, मद्यपान, ऐश और भी तमाम जाने। इन आयामों में एक आयाम सिनेमा देखना भी जुड़ गया है। ऐसा नहीं कि सिनेमा आदमी पहले देखता नहीं था, देखता था मगर तब शायद वह विलासिता की श्रेणी मेें उतना नहीं आता रहा होगा, जितना आज। तीस-चालीस साल पहले परिवार का बच्चा सिनेमा देख ले, यह सम्भव ही नहीं था, साथ ले जाने की बात तो दूर। चोरी-छुपे स्कूल-कॉलेज का छात्र यदि सिनेमा देखता हुआ किसी परिचित की निगाह आ गया तो उसकी शामत तय हुआ करती थी। बाद में माँ-बाप ने भी डराना छोड़ दिया और बच्चे के दिल और दिमाग से भी डर जाता रहा।

सिनेमा मनोरंजन में शामिल हुआ। धीरे-धीरे, आधुनिक जगत में जब मम्मी-पापा, फ्रेण्ड की तरह होने लगे तब सब मिलकर देखने लगे। इधर सिनेमा बनाने वालों, सिनेमा लगाने और दिखाने वालों ने भी तेजी से आधुनिकता का चोला पहना और एक से बढक़र एक आलीशान सिनेमाघर बनाये। सोफे की कुर्सियों की तरह पसर कर बैठने वाले सिनेमाघर, पच्चीस-पचास रुपए की कॉपी-चाय और पॉपकार्न परोसने वाले सिनेमाघर, चार दरवाजों से चार-चार स्क्रीन के सामने ला खड़े करने वाले और सब जगह अलग-अलग किस्म का सिनेमा दिखाने वाले सिनेमाघर। हम सभी की जीवनशैली में यह सब कब दाखिल हुआ और रच-बस गया पता ही नहीं चला, बस हम इसके आदी हो गये तब जाकर होश में आये।

ऐसे में एक मित्र ने बात छेड़ी कि भैया, देश में अब सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों का अस्तित्व समाप्त हो रहा है। एक-एक करके जाने कितने सिंगल स्क्रीन सिनेमाघर बन्द हो गये हैं। वाकई स्थिति ऐसी ही है। जिस शहर में पन्द्रह-बीस सिनेमाघर हुआ करते थे उस शहर में पाँच सिनेमाघर हो गये हैं, सिने-प्लेक्स के नाम पर। कुछेक मल्टीप्लेक्स, आयनॉक्स बन गये हैं। ऐसे में अब न तो सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों तक अच्छी फिल्म पहुँच पाती है और न ही अस्तित्व को बनाये रखने लायक कमाई ही हो पाती है। तब क्या हो, बन्द न हों तो क्या हो?

सिनेमा, अपनी परम्परा में बहुत सारे अनुभवों को हमसे विस्मृत कर गया है। अब सबसे आगे बैठकर देखने वाला क्लास नहीं रहा। न्यूज रीलें नहीं रहीं, जन गण मन नहीं होता, ट्रेलर नहीं दिखाये जाते, फिल्म शुरू होने के पहले चार-पाँच गाने नहीं होते। हम सब धक्के और धकेले जाने की संस्कृति और जीवनशैली के शिकार हैं अब, छोटे शहरों से सुदूर अंचलों तक सिनेमाघर का चिर-परिचित बड़ा पुराना अस्तित्व अब समाप्त हो रहा है।

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