रविवार, 26 जून 2011

दिल चाहने से जिन्दगी न मिलने तक


जावेद अख्तर और हनी ईरानी की विरासत को अपनी क्षमता और सक्रियता से आगे बढ़ाने वाले उनके बेटे फरहान अख्तर और बेटी जोया अख्तर लीक से अलग हटकर अच्छा काम करते हुए अपनी अलग धारा की तलाश में हैं। जोया अख्तर केवल निर्देशक रहना चाहती हैं और फरहान के लिए केवल निर्देशक बने रहना कम पड़ता है लिहाजा वे नायक भी बनकर फिल्मों में आते हैं। जावेद अख्तर को तो खैर उनकी कलम के लिहाज से खूब जाना गया है मगर हनी ईरानी ने भी यश चोपड़ा और राकेश रोशन के लिए पटकथाएँ लिखी हैं।

फरहान अख्तर, हनी के बेटे ने अब से दस साल पहले दिल चाहता है नाम की एक बड़ी खूबसूरत और जज्बाती फिल्म बनायी थी जिसमें आमिर खान, अक्षय खन्ना और सैफ अली खान की भूमिकाएँ थीं। एक दशक पहले के समय और उस समय के युवा, उनकी जिन्दगी, सपने और चुनौतियों को दिल चाहता है में फरहान ने अपनी कल्पनाशीलता और निगाह दी थी। इस फिल्म की बड़ी तारीफ भी हुई थी। जावेद अख्तर के वरिष्ठ सहभागी सलीम खान साहब ने फरहान के इस काम से खुश होकर फिल्मफेयर की अपनी वो ट्रॉफी उन्हें तोहफे में दे दी थी जो उन्हें दीवार के लिए मिली थी।

समय बदता है, अब दस बरस बाद जोया अख्तर ने जिन्दगी न मिलेगी दोबारा के रूप में ऐसी फिल्म बनायी है जिसमें फिर तीन दोस्त हैं, ऋतिक रोशन, अभय देओल और फरहान अख्तर। तीनों की परिपक्वता आज के समय के नायकों से ज्यादा है, खासकर युवा नायकों से। दस साल पहले दिल चाहता है में दिल को टटोला गया था और अब दस साल बाद जिन्दगी की अहमियत को लेकर बात की गयी है। यह ऐसे समय की फिल्म है जब जिन्दगी के मोल और अस्थिरता को लेकर समाज और हमारे आसपास एक तरह की अंधगति और वो भी नासमझ किस्म की दिखायी देती है। ऐसे माहौल में फिल्म का नाम सचेत करता है और अपनी तरफ आकर्षित भी करता है।

जोया अख्तर की यह फिल्म निश्चित ही जिज्ञासा में देखी जायेगी, इसे नाहक खारिज करना आसान न होगा। फिल्म में सितारा आकर्षण भी खासा है। ऋतिक रोशन, जोया की कद्र, हनी ईरानी के प्रति अपने असीम आदर की वजह से करते हैं जिनकी लिखी फिल्मों ने उन्हें बड़ा सितारा बनाया। यही कारण था कि जोया की पिछली फिल्म लक बाय चांस में भी हिृतिक की विशेष भूमिका थी। इस बार जिन्दगी न मिलेगी दोबारा मुख्य रूप से ऋतिक के ही कंधों पर है, अभय और फरहान, जोया की लिखी इस पूरी फिलॉसफी में उनके सहभागी।

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