मंगलवार, 19 जुलाई 2011

जिन्दगी न मिलेगी दोबारा



किसी भी सिने-प्रेमी के लिए एक अच्छी फिल्म नसीब होना आज के समय में बड़ा मुश्किल होता है। फिल्मों ने अपने स्तर और सतहीपन से जिस तरह का वातावरण खड़ा किया है, उस पर ज्यादा बात करना उसकी स्तुति करने जैसा हो जाता है कई बार। बहरहाल बहुत दिनों बाद एक अच्छी फिल्म देखने का सुख जिन्दगी न मिलेगी दोबारा देखते हुए मिलता है। आज की टिप्पणी का शीर्षक किसी प्रोपेगण्डा या नाहक पैरवी भरा नहीं है, वाकई एक अच्छी फिल्म को दोबारा देख लेने का मशविरा जैसा है, जिसे मानना नहीं मानना सभी की इच्छा पर निर्भर है।

जोया अख्तर को हम इस साल की चर्चित निर्देशिका इस रूप में मानेंगे कि उन्होंने एक अच्छी फिल्म को बड़ी तसल्ली से गढ़ा है। अपनी सहेली रीमा कागती के साथ उन्होंने इस फिल्म की कहानी और पटकथा लिखी और उनके भाई फरहान अख्तर ने एक भूमिका निभाते हुए इस फिल्म के संवाद भी लिखे। जावेद अख्तर, उनके पिता की कविता जैसे इस फिल्म के मर्म को शाश्वत करती हुई चलती हैं जब फरहान अख्तर की आवाज में हम फिल्म में उन्हें सुनते हैं। गीत तो खैर जावेद साहब ने लिखे हैं ही, हाँ गीत मगर शंकर एहसान लॉय इस तरह संगीतबद्ध नहीं कर पाये कि हम याद रख पायें।

एक दोस्त का शादी से पहले अपने दो और साथियों के साथ एक यात्रा पर निकलने का विचार, बस केवल खूबसूरत देश के नगरों में घूमना भर नहीं है, यह यात्रा तीनों ही मित्रों के लिए एक तरह से जिन्दगी के अर्थ समझने में कारगर साबित होती है। ऋतिक जिसके जीवन का अर्थ चालीस की उम्र तक धन इकट्ठा करना है और फिर रिटायरमेंट के बाद उसका उपभोग, अभय जो अपनी मँगनी करके इस यात्रा की योजना बनाता है और फरहान जो इस यात्रा के बहाने अपने पिता से मिलना चाहता है, तीनों को अपना यथार्थ इस यात्रा में समझ में आता है।

स्पेन की यात्रा, हम दर्शक भी करते हैं, आसमान से लेकर जमीन और जमीन से लेकर समुद्र के नीचे तक। डर लगते और खत्म होते हैं। पश्चिम के त्यौहार हैं, रोमांच है, अगर जिन्दा बच गये तो क्या करेंगे, तीनों दोस्तों के जीते-जी लगभग पुनर्जन्म होने का एहसास दिलाने वाला क्लायमेक्स।

कैटरीना, कल्कि कोचलिन, दो दृश्यों में नसीर और दीप्ति नवल, जिन्दगी न मिलेगी दोबारा के खूबसूरत हिस्से हैं। कैटरीना और ऋतिक की केमेस्ट्री खूबसूरत है। अगले पड़ाव पर जाते हुए मित्रों में से अपने प्रेमी का मोटर साइकिल से पीछा करके, एक जगह उनकी कार रुकवाकर वह जब हिृतिक का चुम्बन लेकर लौटती है तो दर्शक जैसे साँसे थामे इस सुखद दृश्य से आनंदित हो रहा होता है। और भी बहुत कुछ, पर बेहतर है, फिल्म देखी जाये, एक अच्छी फिल्म।



2 टिप्‍पणियां:

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…
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डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

'जिंदगी न मिलेगी दोबारा' निःसंदेह बेहतरीन सिनेमा है. यह फिल्म न सिर्फ जिंदगी जीने के लिए प्रेरित करती है बल्कि पुरे जिंदादिली से जीवन जीने का सन्देश भी देती है. सच है जिंदगी नहीं मिलती दोबारा. जिंदगी अफ़सोस करने केलिए नहीं बल्कि हर पल जीवन्तता से जीने केलिए है. अच्छी समीक्षा केलिए बधाई!