रविवार, 28 अगस्त 2011

आधी हकीकत आधा फसाना



राजकपूर की फिल्म मेरा नाम जोकर, उनके निर्माण की अनेक श्रेष्ठ और सफल फिल्मों के बीच एकमात्र श्रेष्ठ मगर विफल व्यावसायिक कृति है। इस रविवार इस फिल्म की चर्चा हम कर रहे हैं। मेरा नाम जोकर का प्रदर्शन काल सत्तर का है। इस फिल्म में निर्देशक और नायक राजकपूर के साथ-साथ बड़े सितारों की एक बड़ी श्रृंखला थी, सिमी ग्रेवाल, मनोज कुमार, दारा सिंह, धर्मेन्द्र, पद्मिनी, अचला सचदेव वगैरह वगैरह। यह बहुत बड़ी फिल्म थी, दो मध्यान्तर वाली।

एक करोड़ रुपए में तब यह फिल्म बनी, उसने आर्थिक रूप से बड़ा घाटा दिया। यह फिल्म एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जिसके पिता सरकस में जोकर थे और एक बड़े हादसे का शिकार होकर जान से हाथ धो बैठे थे। माँ कभी नहीं चाहती कि बेटा भी सरकस में काम करे लेकिन बेटे के मन में वही इच्छा है, पिता की तरह जोकर बनने की। वह चोरी-छुपे, माँ को बताये बिना अपना यह शौक पूरा करता है। जिस दिन सरकस में अपनी माँ को बुलाकर वह उसे यह खुशखबरी देना चाहता है, उसी क्षण माँ के दिल की धडक़न रुक जाती है। बड़ा त्रासद दृश्य है जिसमें यह जोकर एक ही क्षण में रोता भी है, सम्हलता है, हँसने लगता है।

फ्लैश बैक से शुरू इस फिल्म में राजू अपने जीवन में आयी तीन स्त्रियों को सरकस में अपने महात्वाकाँक्षी शो के लिए आमंत्रित करता है। हमारे सामने एक कहानी चलती है। सोलह साल की उम्र में अपनी अध्यापिका से मन ही मन प्यार करता राजू, सरकस में एक रूसी युवती के प्रेम में राजू और उत्तरार्ध में एक मतलबी युवती के प्रेम में छला राजू।

मेरा नाम जोकर में लगातार फिलॉसफी चलती है। ऐ भाई जरा देख के चलो, जीना यहाँ मरना यहाँ, जाने कहाँ गये वो दिन जैसे गाने मनुष्य की छटपटाहट को महसूस करते हैं। केन्द्र में राजकपूर हैं, वे ही दर्शकों को एकाग्र रखते हैं। इस फिल्म के पहले भाग में किशोरवयी ऋषि कपूर, राजकपूर के बचपन की भूमिका बखूबी निबाहते हैं।

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