सोमवार, 14 नवंबर 2011

रॉकस्टार : गहरे सम्बोधन और संकेतों के वर्चस्व की फिल्म


ग्यारह ग्यारह ग्यारह को और भी बहुत सारे अजब-गजब कामों-कारनामों के साथ ही शुक्रवार होने की वजह से फिल्में भी रिलीज हुईं। पिछली कुछेक बड़ी और सफल फिल्मों के बाद सभी की निगाहें रॉकस्टार पर टिकी थीं। एक अन्तराल हो गया था, रणबीर कपूर की फिल्म आये हुए और इम्तियाज अली की अपनी पटकथा पर उन्हीं के द्वारा निर्देशित इस फिल्म को लेकर भी एक किस्म की जिज्ञासा बनी हुई थी। यह दिलचस्प है कि उनकी पहली फिल्म जब वी मेट सिनेमाघरों से जल्दी उतर जाने और उतनी ही जल्दी उसकी सीडी और डीवीडी व्यावसायिक रूप से जारी हो जाने के बाद भी हिट मानी जाती है। वह एक रोचक फिल्म तो खैर थी ही। बहरहाल रॉकस्टार को देखते हुए यही लगता है कि यह प्रेम के धरातल पर बहुत गहरे सम्बोधन और उसी संकेतों के वर्चस्व की कहानी है। तत्काल जाँचकर इसका कोई भी परिणाम दे देना उतना तर्कसंगत नहीं लगता, ऐसा कुछ समीक्षाएँ और विचारों को देख-पढक़र लगता है।

रॉकस्टार के मूल विषय में प्रेम और महात्वाकाँक्षा दोनों के प्रतिशत कम-ज्यादा नहीं हैं। महात्वाकाँक्षा एक स्वप्रद्रष्टा और जरूरतमन्द इन्सान का स्थायी भाव होती है, उसकी अपनी नैतिकताएँ भी हुआ करती हैं, यों महात्वाकाँक्षा शब्द ऐसा है जो जमाने के चलन और अवलोकन के साथ ही हरेक में लगभग प्रतिरोपित सा हुआ करता है। बहरहाल फिल्म का नायक यदि संयुक्त परिवार में और वह भी अपने परिवार के लगभग उपेक्षित से दिखायी देने वाले रहमोकरम में अपने दिन व्यतीत कर रहा है, वह निश्चित ही घुटन से भरे उस अन्त:पुर से बाहर साँस लेने के लिए अपना आसमान तलाशेगा ही। रॉकस्टार का जॉर्डन भी ऐसा ही है। वह अपनी उंगलियों और गले के हुनर को लगातार माँझता है, दिखायी देती दुनिया को पकडऩा चाहता है, उसका हिस्सा बनना चाहता है। यहाँ पर मित्रों की अपनी भूमिका है, जो दो-तीन निहायत मूर्ख किस्म के हैं, एक होटल का मालिक खटाना है, जिसकी हमदर्दी उसके साथ लगातार चलती है। 

यह फिलॉसफी जबरन ही नायक के मन में धकेल दी जाती है कि हर उत्कर्ष, यश और उससे समृद्ध व्यक्ति के पीछे प्रेरणा तकलीफें, खण्डित प्रेम, संघर्ष, हुज्जत और अपमान की बड़ी भूमिका होती है। नायक का ऐसे अवसरों की तलाश करना वृथा ही है। हाँ वह हीर से प्रेम का आग्रह करता है, अपनी बात कहता है मगर उसके पीछे दिमाग एक रॉकस्टार के रूप में सारी दुनिया पर छा जाने के लिए ही काम कर रहा है। वह इस मसले पर कमजोर पड़ता है लेकिन हीर की तरफ से जब प्रेम उत्तर के रूप में उसकी तरफ लौटता है, तब ही दरअसल कमाल होता है। अब उसके पास इस विचार का स्मरण शायद नहीं है कि यह प्रेम कभी विरह या वेदना होगा तक उसकी उन्नति होगी, बल्कि उत्कर्ष से कहीं ज्यादा अनमोल प्रेम हो जाता है।


 जॉर्डन और हीर का साथ में एक वयस्क फिल्म देखना, देसी शराब पीकर मजे करना और आगे के दृश्यों में हीर का अपनी शादी के साथ प्राग चले जाना फिल्म के आगे के वे हिस्से हैं जिससे प्रेम की अपनी शिद्दत स्थापित होती है। यहाँ हम देख यह रहे हैं कि उत्कर्ष को प्रेम इस तरह प्रभावित करता है कि जॉर्डन लगातार विचलन की स्थितियों में है। प्राग में उसका हीर के साथ मिलना और हीर का एक तरह से अपने परिवार के बीच शर्मसार होना प्रेम के ही धरातल पर ज्यादा गहरे होता जुनून है। रॉकस्टार इसमें मिट सा रहा है तमाम लोकप्रियताओं के बावजूद। यहाँ पर म्युजिक कम्पनी के मालिक का अपना शोषक हथियार है, वो कलाकार को बांधकर रख देना चाहता है अपनी व्यावसायिक लोलुपतातों में। 

फिल्म जिस तरह आगे बढ़ते हुए त्रासद अन्त की राह पकड़ती है, वहाँ जरा सा यह एहसास होता है कि पटकथाकार इम्तियाज अली भ्रम का शिकार हो गये हैं। हीर की बीमारी में जो कि जाहिर है जानलेवा है, छोटे-मोटे चमत्कार या उसका लगभग निर्जीव होकर जरा-जरा चेतना जॉर्डन की उंगलियों और ओठों के स्पर्श का परिणाम हो सकता है, फिल्म देखते हुए दर्शक को स्फुरित करता हो, मगर यहाँ पर आगे चलकर बेहतर होता कि नायिका कोमा में न जाती, वह भी डॉक्टर द्वारा यह जाने, जाने के बाद कि हीर गर्भवती है। नायिका का कोमा में जाना उसकी दशा और जीवन का अन्तिम दूश्य सा गढ़ा जाना, नायक में एक अपराधबोध को स्थायी रूप से सम्प्रेषित करके रख देता है। वह बहुत बड़ा स्टार बनकर स्थापित तो हो गया है, जैसा कि फिल्म का क्लायमेक्स असंख्यों की भीड़ के साथ जाहिर करता है मगर वह फिल्म को सही जगह पर ले जाने में विफल हो जाता है। दर्शक लगभग अपनी असहमतियों के साथ इस फिल्म को देखते हुए सिनेमाघर से बाहर आता है।

फिल्म में सहायक कलाकारों की भूमिकाएँ कमाल की हैं। खासतौर पर पीयूष मिश्रा, कुमुद मिश्रा और शरनाज पटेल का जिक्र यहाँ खासतौर पर किया जाना बेहद जरूरी लगता है। पीयूष मिश्रा ने म्युजिक कम्पनी के मालिक और कुमुद मिश्रा ने नायक के हमदर्द खटाना की भूमिकाएँ निभायी हैं। ये दोनों ही किरदार नायक के साथ-साथ चलते हैं और उसके हर मोड़, हर अन्तद्र्वन्द्व के संगी से होते हैं। ग्वालियर के पीयूष और रीवा-भोपाल के कुमुद दोनों अत्यन्त रंग-प्रतिबद्ध और प्रतिभाशाली कलाकार हैं, दोनों ही रॉकस्टार का अहम हिस्सा हैं। शरनाज पटेल ने नायिका की माँ की भूमिका निभायी है, उनके लिए निर्देशक ने समझदार दृश्य और संवाद गढ़े हैं। उत्तरार्ध में उनका रोल बड़ा महत्वपूर्ण हो जाता है। नायक की छोटी बहन, नायिका की छोटी बहन के किरदारों से भी इस फिल्म को बड़ा अच्छा समर्थन मिलता है।

रणबीर कपूर इस फिल्म के मुख्य श्रेयक हैं। इसे कमाल ही कहा जाना चाहिए कि इस युवा ने जॉर्डन के किरदार को ऐसे अनोखे शेड्स में इतने प्रभावी ढंग से निभाया है। वह जब पीथमपुरा के अपने घर में अपने भाइयों से पिटता है, तब, जब वह केन्टीन में अपने दोस्तों की झूठी और आँख मारू हौसलाआफजाई में ख्वाब देखता है, तब, जब वह नायिका के सामने आता है और सपाट ढंग से अपना प्रेमाग्रह करता है, तब और फिर प्रेम होने के बाद, बिछोह होने के बाद, विद्रोही मन:स्थितियों में, आक्रामक परिस्थितियों में कितने सारे आयामों में दिखायी देता है, वह गजब ही है। कहना चाहिए कि रॉकस्टार, रणबीर कपूर की परिपक्वता को प्रमाणित करने वाली पहली फिल्म है। हीर बनी नरगिस फखरी अपनी नर्म आवाज और छोटी-छोटी आँखों से परदे पर जब-जब होती हैं, मूड बना देती हैं। वे दृश्य बड़े महत्व के हैं, जब वे नायक के सामने उसे नसीहत देने से लेकर याचना और लानत तक ही मुद्राओं में आती हैं। बीमारी के आखिरी दृश्यों में वे दर्शकों की सहानुभूति बड़ी तेजी से ले जाती हैं।
एक तरफ इस फिल्म में दिवंगत शम्मी कपूर को कुछ दृश्यों में देखना बड़ा महत्वपूर्ण लगता है। विकट बीमारी के बावजूद अपने पोते के लिए वे इस फिल्म में आये। वे सारे दृश्य स्मरणीय हैं जिनमें शम्मी कपूर होते हैं। इरशाद कामिल के गीत रॉकस्टार की जान हैं, उसी तरह मोहित चौहान की आवाज़ भी। 


 ए.आर. रहमान का बैकग्राउण्ड स्कोर और संगीत दोनों ही फिल्म के संगीतपक्ष को अविस्मरणीय बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं। सिनेमेटोग्राफर अनिल मेहता ने दिल्ली से लेकर प्राग तक उन खास जगहों को यादगार बना दिया है, जहाँ ये फिल्म पूरी हुई। खासतौर पर ऊँचाई से प्राग के दृश्य इमारतें, रात की रोशनियाँ, खासकर निजामुद्दीन औलिया साहब की दरगाह का परिवेश मुग्धकारी लगता है, इसमें सिनेमेटाग्राफी का बड़ा कमाल है। कुल मिलाकर रॉकस्टार को हम नये जमाने की, आज की फिल्म मानकर उसका स्वागत करें। यह आज की पीढ़ी की फिल्म है। जिन्दगी की अपनी तरह की जरूरी सी नसीहतें भी रॉकस्टार में हैं और तार्किक आधार भी।

कोई टिप्पणी नहीं: