रविवार, 28 अप्रैल 2013

वे दृश्य चलते रहें

जिन्दगी में अक्सर कई बार कुछ दृश्य बेहद कश्कमश से भरे दिखायी देते हैं, स्थितियाँ ऐसी हो जाती हैं कि आपका अपना अनुभव, जिया हुआ जीवन और उससे संचित थोड़ा-बहुत ज्ञान भी उस समय विशेष के लिए अकारथ सा लगता है।

हम सभी किसी न किसी उपन्यास की सी जिन्दगी जीते हैं, पहले से आखिरी पन्ने तक जीवन को हम बहुत सारे दृश्यों में बाँटकर अपने भीतर रख लिया करते हैं। स्मृतियों के ध्वज कुछेक दृश्यों को बार-बार याद दिलाया करते हैं, मन करता है थोड़ी देर थमे रहकर वे दृश्य हम खुद देखें और उस समय में अपने को देखकर अपनी स्थितियों का आकलन करें। बड़ा कठिन होता है लेकिन सब।

जीवन में घटने वाली विभिन्न परिस्थितियों के दृश्य-बन्ध उस पूरी आवृत्ति में हमारे बहुत से खोये-पाये के साक्षी होते हैं। अपने अस्तित्व और चेतना के साथ मिले रिश्तों के साथ-साथ हमारे अपने गढ़े हुए रिश्ते या वे रिश्ते जिनमें दूसरों के द्वारा हमें कहीं न कहीं गढ़ा गया हो, सभी का अपना सच और निष्ठा तथा भेदभाव का अन्तःकरण है जो हम सभी बराबर मात्रा में जानते हैं।

कई बार न जाने क्यों लगता है कि सब कुछ तेजी से छूट रहा है, बहुत से लोग बड़ी दूर दिखायी देने लगे हैं, कभी उनके साथ होने के भी दृश्य स्मृतियों में पुनरावलोकन के लिए उपस्थित होते हैं, कई बार देखने का जी होता है, कई बार नहीं और कई बार मन करता है कि वे दृश्य चलते रहें और हम उस जगह से कहीं बाहर चले जायें.......................

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