शुक्रवार, 14 जून 2013

अलविदा तार.........


आज से तार भेजे जाने का रिवाज बन्द हो रहा है। अंग्रेजों के जमाने में चिट्ठी से पेश्तर सूचना पहुँचाने का तंत्र तार के रूप में विकसित किया गया था एक सौ अट्ठावन वर्ष पहले। अमूमन चिट्ठी पहुँचने में एक सप्ताह का समय लगा करता था और तार एक दिन से लेकर दो या तीन दिन में पहुँच जाया करता था। फर्क यह होता था कि चिट्ठी पोस्टकार्ड, अन्तर्देशीय या लिफाफे में विस्तार की अलग-अलग सम्भावना के साथ भेजी जा सकती थी जबकि तार में अधिक से अधिक एक वाक्य में आप सारी सूचना कह दो या कह देने की प्रतिभा का परिचय दो। धीरे-धीरे लोग इसमें भी दक्ष और कुशल हो गये क्योंकि नासमझी में बड़े सन्देश भेजना खर्चीला हो जाता था वजह तार में गणना शब्दों के आधार पर होती थी, प्रति शब्द शुल्क लगा करता था।

साठ-सत्तर के दशक के सिनेमा में तार का आना पूरी कहानी और घटनाक्रम को बदल देने का काम करता था। नायक या नायिका अक्सर अपने माता-पिता को इस तरह का तार भेजा करते थे, खासतौर पर दूर देश से पढ़ाई करके जब धर्मेन्द्र के घर लौटने का तार पिता नजीर हुसैन को मिलता था तो वे पूरे बंगले में खुशी से दौड़ते नजर आते थे, बेटा विदेश से आ रहा है, अजी सुनती हो.........! पत्नी से शेष परिवार और घर के नौकर-चाकरों तक को छोटे साहब के आने की खबर हो जाती थी और सब खुशी से झूम उठते थे। हीरो के आने की खबर से नायिका के भी ओंठ गुलाबी हो जाया करते थे। कई बार नजीर हुसैन को किसी दुखद घटना का तार मिलता था तो तुरन्त उनके सीने में दर्द होने लगता था और वे हाथ रखकर बेचैन होने लगते थे।

सिनेमा से लेकर जीवन तक तार के बहुत सारे भावनात्मक आयाम रहे हैं, हालाँकि मूल में तार का आना दिल के तेज धड़कने का सबब बन जाता रहा। हमेशा किसी अनिष्ट की सूचना तार से जुड़ी रही है। तार के सन्दर्भ में लोग इस बात का मजा लेकर आज हँसते हैं कि तार आने की खबर और उसे काँपते हाथों से हस्ताक्षर कर ग्रहण किए जाने तक ही रोना-धोना मच जाता था, फिर भले ही उसमें परिवार को नाना-नानी या दादा-दादी बनने की सूचना दी गयी हो, नौकरी लगने की बात कही गयी हो या प्रमोशन होने की।

तार सत्तर के दशक में क्रान्तिकारी युवाओं ने प्रेम विवाह करने के बाद अपने माता-पिता को भी दिया। अचानक दो-चार दिन की अनुपस्थिति और उसके बाद में आने वाला तार जिसमें लिखा है कि हम खुशी से शादी कर रहे हैं। आपका आशीर्वाद चाहिए। उसके कुछ दिन बाद जोड़े से आकर पाँव छुए और आशीर्वाद प्राप्त किया। माता-पिता के आगे भी फिर स्वागत समारोह आयोजित किए जाने के सिवा कोई विकल्प नहीं बचता था। इस तरह तार ने प्रेमियों के पक्ष में भी अपना बड़ा रोल अदा किया।

समय और तकनीकी विकास के साथ तार की यात्रा धीरे-धीरे समृद्ध हुई। संचार और आपसी सम्पर्क के दूसरे तीव्र संसाधनों के बाद तार की वकत जरा कम हुई फिर भी परीक्षा में सफलता के लिए बधाई देने वाले तार बहुत आते-जाते रहे। दुखद घटना में सांत्वना और ढाँढस बंधाने वाले तार खूब किए जाते रहे। वैवाहिक जीवन की सफलता की शुभकामनाओं के तार भी लोग किया ही करते रहे। चुनाव जीतने, विधायक या सांसद बनने और मंत्री बनने पर भी निकटवर्तियों ने तार भेजकर अपनी उपस्थिति दर्ज करा लेना हमेशा जरूरी समझा है।

स्थूल अर्थों में देखा जाये तो तार सभी को जोड़ने वाली उस व्यवहारिकी का नाम है जिसका माध्यम या जरिया सुगम है, उसकी अपनी निजता है, यह ठीक है कि आप भेजते हैं और पाने वाला पढ़ता है, पर उसकी अपनी गोपनीयता उन तमाम माध्यमों से आम होते हुए फिर गोपनीय स्वरूप में गन्तव्य तक जाती है। अमूमन दब्बू और झेंपू लोगों ने अपने प्यार का इजहार भी सैकड़ों-हजारों बार तार से किया होगा जिन्हें कहने में जान पर बनती होगी। बहरहाल सकल जगह में ऐसी बहुत सी चीजें हैं, बातें हैं जो हमारी उपेक्षा या उदासीनता का शिकार रोजमर्रा के जीवन में हुआ करती हैं, हम अचानक तब उनका मूल्य समझते हैं या उन पर तब एकाग्र होते हैं जब उनका अवसान होता है या हमारे जीवन से उनकी विदाई होती है।

आज तार की विदाई पर भी कुछ ऐसा ही लग रहा है...................................

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