सोमवार, 15 जुलाई 2013

नैतिकता के प्रश्न, सेंसर बोर्ड और चेन्नई एक्सप्रेस


भारत सरकार में सेंसर बोर्ड एक ऐसी व्यवस्था है जिसके जिम्मेदार या उत्तरदायी होने के विषय में पिछले काफी समय से विश्वास घटता जा रहा है। विशेष रूप से उल्लेखनीय यह है कि सेंसर बोर्ड में अध्यक्ष के पद को प्रायः सिनेमा के क्षेत्र में शीर्ष कलाकारों ने विभूषित किया है समय-समय पर। हम महिलाओं में आशा पारेख और शर्मिला टैगोर के नाम ले सकते हैं। अभी लीला सेमसन हैं जो हमारे देश की एक प्रतिष्ठित कलाकार और कला के क्षेत्र में अत्यन्त सम्मानित हैं। 

विभिन्न राज्यों से भी सेंसर बोर्ड के सदस्य के रूप में लोगों का मनोनयन हुआ करता है पर यह पता नहीं चलता कि वास्तव में सब अपनी भूमिका का किस तरह निर्वाह करते हैं? सेंसर शब्द ही अपने आपमें अनुशासन से जुड़ा है। इस शब्द की व्याख्या में जाया जाये तो अपने आपमें यह इतना प्रबल और महत्व का शब्द है कि इसका उदाहरण या प्रयोग सिनेमा से इतर अन्य विषयों में भी हुआ करता है। कहीं न कहीं यह रोक, निगरानी और बड़े अर्थों में मर्यादा का रक्षक है। हमारे देश में मर्यादा के सिद्धान्त क्या हैं, इस पर अलग से जाने की स्थितियाँ यहाँ नहीं हैं क्योंकि बहुत से शाब्दिक अनुशासनों की स्थिति दयनीय है।

खैर सीधे-सीधे विषय पर आयें तो आपत्तिजनक यह है कि शाहरुख खान की फिल्म चेन्नई एक्सप्रेस का एक गाना लगातार नागवार लग रहा है जिसके पाश्र्व में बड़ी संख्या में कथकली के कलाकार फिल्मी स्टाइल में नाच रहे हैं। चेन्नई एक्सप्रेस शाहरुख खान की निर्माण संस्था ने बनायी है और रोहित शेट्टी ने फिल्म को निर्देशित किया है। दरअसल हिन्दी सिनेमा में तारणहारों की स्थितियाँ बड़ी अच्छी हैं जिन्हें लम्बे समय तक दरकिनार रखने वाला व्यक्ति भी उस समय पलक पाँवड़े बिछाकर अपना उद्धार करने का दायित्व सौंपता है जब वह गहरे संक्रमण काल में होता है। शाहरुख खान का सितारा कुछ वर्षों से गर्दिश में रहा है। ऐसे में सौ करोड़ की सीमा से सोचना शुरू करके सौ करोड़ की सीमा पर ही सोचना बन्द करने वाले फिल्म उद्योग में अपनी साख बना चुके रोहित शेट्टी को उन्होंने चेन्नई एक्सप्रेस निर्देशित करने का दायित्व सौंपा।

रोहित शेट्टी ऐसे निर्देशक के रूप में अपनी कोई पहचान बना नहीं पाये हैं जिनका हमारे देश या परम्परा के सांस्कृतिक मूल्यों से कुछ लेना-देना हो। उन्हें कथकली जैसी दक्षिण की महान परम्परा, जहाँ से वे खुद भी आते हैं, अपनी फिल्म के एक गाने में एक्स्ट्रा कलाकारों की तरह उपयोग में लाये जाने योग्य लगी। मनोरंजन और सफलता के मंत्र को समझने वाले सिनेमा के बड़े दार्शनिक रोहित शेट्टी ने नैतिकता के इस प्रश्न पर विचार नहीं किया होगा। सांस्कृतिक मूल्यों को लेकर आमिर खान जैसी समृद़ध या संजीदा दृष्टि शाहरुख खान के पास नहीं है जो वे भारतीय कला मूल्यों और उसकी व्यवहारिकी पर रचनात्मक दृष्टिकोण रखें या सजगता का परिचय दें। उनको येन केन प्रकारेण एक हिट की इस समय सख्त जरूरत है। 

अचरज इस बात पर होता है कि किस तरह भरतनाट्यम की एक शीर्षस्थानीय नृत्यांगना जो सेंसर बोर्ड की चेयर परसन हैं, इस बात के लिए सहमत हुई होंगी कि इससे हमारी कलाओं का कोई अपमान नहीं हो रहा है। यह गाना धड़ल्ले से चैनलों पर चल रहा है, जाहिर है फिल्म में भी दिखायी देगा।

 

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