गुरुवार, 26 दिसंबर 2013

अलबेलों-मस्तानों का देश

देव उठने के बाद विवाह काज पर लगी आचार संहिता जैसे समाप्त हुई और सब तरफ परम्परा तथा रीति-रिवाज़ अनुसार सुबह और शाम को बैण्ड बाजों की आवाज़ें विवाह नाद करने लगीं। हर बारात में अपनी-अपनी हैसियत के अनुसार डीजे आगे-आगे नेतृत्व करते चलते दिखायी देने लगे। साल दर साल बैण्ड बाजे वाले नये-नये गाने का रियाज़ करके जिस तरह तैयार होते हैं उसी तरह इस साल भी तैयार थे। बारातें भी आखिर उनके ही भरोसे थीं। बैण्ड बाजे वालों के पास गानों को बजाने का भरपूर खजाना था। होशमन्द और मदहोश दोनों किस्म के बारातियों की फरमाइशें पूरी करना क्या भला आसान बात है? नहीं न। लिहाज़ा जवान से लेकर बूढ़े बैण्ड वादकों का समूह मुँह फुला-फुलाकर जिस तरह से बिना दम भर रुके गाने बजाने में दिन-रात लगे नज़र आ रहे हैं वो कोई हम हिम्मत की बात नहीं है। कइयों की तो उम्र ही हो गयी मगर जवानी में बाजे का जो चुम्बन लिया, तो आज तक मुँह नहीं हटाया।

ब्याह-बारात में नाचने-गाने वालों को बी. आर. चोपड़ा साहब का शुक्रगुज़ार होना चाहिए कि उन्होंने पचास साल पहले नया दौर फिल्म बनायी और उसमें खासकर, ये देश है वीर-जवानों का, गाना रखा। उस समय चोपड़ा साहब को सपने में भी यह अहसास न होगा कि यह गाना आगे चलकर देशभक्ति से ज्य़ादा नेताओं के जलसों, आज़ादी और गणतंत्र दिवसों और उसके साथ-साथ अत्यन्त आश्चर्यजनक ढंग से ब्याह-बारात वालों के लिए भी लैण्डमार्क होने वाला है। साहिर साहब ने इस गीत को देश की तरु णाई के लिए लिखा, सेना और सिपाहियों के लिए लिखा लेकिन ओ.पी. नैयर के संगीत से मस्त कर देने वाला यह गीत सेना और सिपाहियों के बजाय उन सब लोगों के लिए काम आया जिनका जिक़्र ऊपर आया है। 

यह कम अचरज की बात नहीं है कि इन पूरे पचास सालों में दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँच गयी मगर ब्याह-बारात में यह गीत आज भी सरपरस्त है सब गानों का। दरअसल इस गाने पर नाच-गाकर ही दूल्हे की ओर से बाराती अपने पौरुष को प्रमाणित करते हैं। इस गाने पर डाँस भी मदमस्त कर देने वाला होता है। तन डोले, मेरा मन डोले पर लम्बे समय बारातियों ने मुँह में रुमाल की बीन बनाकर और अपने साथी को नागिन बनाकर नृत्य किया, उसका भी लम्बा इतिहास रहा है मगर, ये देश है वीर-जवानों का, की तो बात ही और है। इस गीत की धुन पर नाचते-नाचते बारातियों में सचमुच फौजियों जैसा जोश आ जाता है और होशमन्दी और मदहोशी की मिली-जुली जुगलबन्दी में कोट, टाई और जुल्फों की स्थितियाँ ऐसी हो जाती हैं जैसे सचमुच जंग में बिना लड़े परास्त हो गये हों।

वैसे इस बात पर तो दुख ही होता है कि साहिर साहब ने जिस भावना के साथ, ये देश है वीर-जवानों का, अलबेलों का, मस्तानों का, गीत लिखा था उस भावना और पूरे सपने के इन साठ सालों में बेहद बुरे हाल हुए हैं। प्रेरणा का गीत अब जलसे, जुलूस और उन्माद की पहचान बन गया है। अब हमारे यहाँ अलबेले और मस्ताने, शोहदे के रूप से जवान हो रहे हैं। वे सरे राह लड़कियों का आना-जाना दूभर किए रहते हैं। ये अलबेले और मस्ताने ऐसे होते हैं जो राह चलती स्त्रियों का मंगलसूत्र खींच कर उनका सडक़ पर चलना दुश्वार किए हुए हैं। ये अलबेले और मस्ताने ऐसे हैं जिनकी न तो चाल का पता है, न चेहरे का और न ही चरित्र का। इनका अलबेलापन, मस्तानापन चार दिन की जि़न्दगी में मौज के साथ जीना है, भले ही वो जीना कायरता से भरा हो या निर्लज्जता से भरा। ऐसे अलबेले मस्ताने किसी स्त्री का सुहाग श्रृंगार लूट कर उसे जिस प्रकार का भय, शारीरिक और मानसिक प्रताडऩा देते हैं, देखा जाये तो कुछ देर को उसका बड़ा नुकसान करते हैं लेकिन निश्चित रूप से वे अपने अभागेपन और अनिष्ट को ही निमंत्रित करते हैं। जेवरों का कारोबार करने वाले व्यावसायियों को लूटे हुए मंगलसूत्र का मूल्य नहीं देना चाहिए बल्कि हिम्मत करके ऐसे जेवर बेचने वाले अलबेलों-मस्तानों को पुलिस के हवाले कर देना चाहिए।

वास्तव में, ये देश है वीर-जवानों का, पूरा गीत सुनिए। वैसे तो यह नया दौर नाम की जिस फिल्म का गाना है वो अपने आपमें हिन्दुस्तान के सिने-इतिहास की एक बड़ी आदर्श फिल्म है जिसमें देश, रिश्ते-नाते, परिवार, भाईचारा, दोस्ती, प्रेम, जज़्बात को अत्यन्त ऊँचाई प्रदान की गयी है। इस फिल्म में भारतीय सिनेमा का मस्तक ऊँचा करने वाले कलाकारों ने काम किया है। इस फिल्म के गीत लिखने वाले साहिर, संगीत तैयार करने वाले ओ.पी. नैयर, गीतों को अमरवाणी देने वाले मोहम्मद रफी, आशा भोंसले, शमशाद बेगम जैसे कलाकार हमारी अस्मिता के विलक्षण व्यक्तित्व हैं। आना है तो आ राह में कुछ फेर नहीं है भगवान के घर देर है अंधेर नहीं है, साथी हाथ बढ़ाना जैसे गानों में जीवन मूल्य और सार तत्व समाहित हैं। ऐसी नया दौर का गाना निश्चित ही सदियों तक शादियों और बारातों की शान बना रहेगा। 

क्यों न बना रहे, दूल्हा बनना, घोड़ी चढक़र गाजे-बाजे के साथ दुल्हन ब्याह कर लाना कम शान की बात नहीं है। हालाँकि दबी जुबाँ में दूल्हे के मसखरे साथी यह भी कहने से नहीं चूकते कि वीरता के साथ जाने वाला यह दूल्हा अपनी कायरता का सबब लेकर लौटेगा। लेकिन बारात के शोर में यह बात भी बैण्ड बाजे वालों की चिंघाड़ धुन में दम तोड़ देती है। उस समय सभी के सिर चढक़र बोलता है, ये देश है वीर-जवानों का अलबेलों का मस्तानों का..।





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