सोमवार, 7 जुलाई 2014

एक जुलाई की याद


दिन भर 1 जुलाई को लेकर पुरानी स्मृतियाँ कौंधती रहीं। कुछ अपने पर हँसी भी आती रही। बचपन में अपने लिए यह दिन स्कूल खुलने का होता रहा है। नयी क्लास में पहला दिन। घर के बड़े होने के कारण छुटपन में नक्शेबाजी खूब रही, भले पढ़ाई में लद्धढ़ ही थे। हर सुबह स्कूल हमेशा रो-रोकर ही गये जैसे पता नहीं कौन सा जुल्म किया जा रहा हो। माता-पिता ने, जाहिर है, ख्वाहिश क्यों न रही होगी, शुरूआत रीजनल स्कूल से करायी लेकिन पढ़कर ही नहीं दिया। आखिरकार निगाह के सामने रहें, सो हिन्दी स्कूल में आ गये लेकिन वहाँ भी हर सुबह आँख खुलते ही स्कूल न जाने के बहाने सोचने लगते।

जैसा कि ऊपर नक्शेबाजी खूब रही लिखा, हाँ साहब व्यवस्था पूरी चाहिए, स्कूल खुलने के पहले नया बस्ता हो, वाटर बैग (पानी की बोतल), कम्पॉस, पेन-पेंसिल, रबर, कटर, स्केल, जूते, मोजे, बरसाती, छाता सब कुछ। किताबें, कॉपियाँ भी ले लेने के लिए बड़ा उतावलापन, मम्मी-पापा की आफत करके, दुकान में भले भीड़ हो, अपने को चाहिए। भले साल भरे ढंग से पढ़ें नहीं, जी चुरायें, स्कूल रोते हुए जायें या न भी जायें।

परीक्षाएँ जैसे-तैसे पास करके ही खुश। याद करने पर हँसी आती है, परीक्षा देने के बाद हर दो-चार दिन में मन्दिर जरूर जाया करते थे, ध्यानपूर्वक, प्रार्थना वही, पास हो जायें। हो जाते थे, सप्लीमेण्ट्री आयी तो दो-एक दिन रो-धोकर, जैसे हमने कॉपी में सब कुछ लिखा हो पर नम्बर ही नहीं आये, फिर उसे पास करने की थोड़ी-मोड़ी निष्ठा, खैर उसमें भी फिर पास।

एक बार की याद है, शायद सातवीं क्लास, मॉडल स्कूल में। छमाही की परीक्षा में छ: में से पाँच विषयों में लाल अण्डरलाइन। एक राजाराम शास्त्री सर थे, घर भी आते-जाते थे, उन्होंने बावजूद इसके कि हमारी क्लास का एक भी विषय नहीं पढ़ाते थे, विशेष रूप से क्लास में आये और बाहर निकालकर जमकर तमाचेबाजी की, खूब रुलाया। शाम को फिर घर आ गये, चाय पी, हलुआ खाया और पापा को बताया कि आज हमने सुनील को खूब मारा, पाँच विषय में रह गया। ऐसे ही करेगा तो सालाना में क्या होगा?

यह सब तो खैर स्मृतियों के पुनरावलोकन हैं, यह बात जरूर कहूँगा कि माता-पिता ने अच्छी पढ़ाई के लिए हर जरूरत पूरी की, उनका अपना निश्चित रूप से एक सपना रहा, मेरे स्वभाव, अलाली की वृत्ति और कामचोरी के बावजूद कोई कमी बाकी नहीं रखी। अपना तो खैर क्या कहूँ क्या हो गया लेकिन भाई-बहनों ने अच्छे प्रतिसाद दिए और वे सब आकाँक्षाएँ पूरी कीं जो अविभावकों की रहीं, मेरे हिस्से की भी पूरी कीं.......

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