गुरुवार, 27 नवंबर 2014

माँ निगरानी में खाना खिलाती है

मम्मी के साथ खाना खाने की बात तय कर आओ तो वे व्यग्रता से प्रतीक्षा करती हैं। उन्होंने साफ-साफ कह दिया है कि समय पर आ जाया करो, देर होगी तो फिर हम सो जायेंगे। अपनी मसरूफियत उनका समय न बिगाड़े इसकी फिक्र रहती है। दस-पन्द्रह दिनों में जब कभी उनके साथ खाने का वक्त आता है तो लगता है बरसों की भूख से अब निजात मिल रही है। 

मम्मी हमेशा की तरह बहन-बेटी से थाली परोसे जाने के पहले मेरे लिए सलाद काट देने की याद दिलाना नहीं भूलतीं। मुझे बचपन से ही प्याज, टमाटर, हरी धनिया, हरी मिर्च और उस पर नमक डालकर खूब मिलाकर बनने वाला सलाद बहुत पसन्द है। वह फैंसी, आकल्पन वाला, सजा-सजाया सलाद मुझे कभी स्वादिष्ट नहीं लगा। जब तक अपनी मरजी का काटकर अच्छे से मिलाया नहीं तब तक नमक टमाटर-प्याज में नहीं मिला और उसने रस नहीं छोड़ा, वैसा।

मैं मम्मी को देखकर मुस्कुरा उठता हूँ। कहता हूँ कि मम्मी सबको पता है कि यह मेरी पसन्द है, आप भी आदेशित करेंगी ही फिर तो मिलेगा ही पर मम्मी का काम ध्यान दिलाना है, बिटिया, भैया के लिए सलाद जरूर काट देना।

इस तरह का सलाद बचपन की पसन्द है। पाँच-सात साल की उम्र में ही एक बार शायद शाम चार बजे स्कूल से आकर खाने की जिद करने लगा। घर में रोटी रखी थी, सब्जी और दाल सुबह खत्म हो गयी थी। मम्मी कहने लगीं, जरा रुक जाओ, अभी सब्जी बनाये देते हैं पर उस समय ठुनकने लगा, अभी खाना चाहिए। तब मम्मी ने प्याज, टमाटर, धनिया, मिर्च का यह सलाद काटकर बनाया और दो रोटी के साथ खाने को दिया। सच कहूँ खुशी-खुशी खा गया। मजेदार लगा। फिर हर दो-चार दिन में अपनी यही फरमाइश, सलाद बना दो।

तभी से यह सलाद जुबाँ पर चढ़ गया। आज तक जब कभी घर की मेहरबानी से थाली में मिल जाये तो मन मजे का हो जाता है लेकिन मम्मी-पापा के घर में खाना खाया तो सलाद खाने के साथ पक्का ही समझो। यह सलाद आज भी अपने हाथ से बनाकर बड़ा मजा आता है। आखिर में जब दाल-चावल-सब्जी में इसका टमाटर और नमक छूटा रस मिला लो तो स्वाद और भी बढ़ जाता है। इधर मम्मी हमेशा की तरह सरदी में कुछ ताजे टेम्परेरी अचार भी डलवाती हैं बहनों से गाजर का, नींबू का, आँवले का, सेम-मटर का, मूली का और सबका मिलाजुला भी। इसके साथ ज्वार, बाजरे और मक्का तथा बिर्रा (गेहूँ, जौ, चना) की रोटी का बड़ा मजा है। इसके साथ आखिर में एक टुकड़ा गुड़ भी।

कोई टिप्पणी नहीं: